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कवितानज़्म
गैरों से दोस्ताना अहबाब से रक़ाबत रखते हैं हबीब तेरे बशर कमाल की शराफ़त रखते हैं हम-नवा होकर भी येह दिले-आफ़त रखते हैं वो अग़्यार होकर भी वारमें नज़ाकत रखते हैं डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" १९/०८/२०२३