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धरातल की दशा से मुंह मोड़ - umesh shukla (Sahitya Arpan)

कवितागीत

धरातल की दशा से मुंह मोड़

  • 48
  • 4 Min Read

पूंजीपतियों का काकश
दिनोंदिन हो रहा मजबूत
उनके नाते ही नष्ट हो रहा
तमाम कानूनों का वजूद
शोषणकारी ताकतें कस
रही समाज पर शिकंजा
उनको कम पैसे में श्रमिक
चाहिए होशियार भला चंगा
पूंजीपतियों के लिए बिछा
रही हैं सब सरकारें कालीन
मेहनतकश मजदूरों के हक
के मुद्दों पे दिखतीं उदासीन
देश की मौजूदा आर्थिक दशा
के नाते रोजगार के मौके कम
बेरोज़गारी की स्थितियों को
लेकर सरकारों को नहीं गम
नेता अपनी पीठ थपथपा रहे
धरातल की दशा से मुंह मोड़
उनको चिंता बस यही कि कुर्सी
पे टिकने का वक्त मिले और
उड़ान हौसलों की तीव्रता का
सदा सर्वदा रहता है अनुगामी
देश के हालात बता रहे शीघ्र
आर्थिक क्षेत्र में आएगी सुनामी

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