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विध्वंस का शैतान - umesh shukla (Sahitya Arpan)

कवितागीत

विध्वंस का शैतान

  • 45
  • 4 Min Read

एक एक कर तोड़ रहे
वो प्रचलित संस्थान
उनके मानस में पैठा
है विध्वंस का शैतान
जनहित के नाम पर वो
कर रहे हैं खूब मनमानी
महंगाई वृद्धि,बेकारी का
कारण उनकी कारस्तानी
हर उपलब्धि का श्रेय वो
अपने पाले में रहे समेट
पूर्व प्रचलित कई संस्थानों
को कर दिया है मटियामेट
योजनाओं के नाम पर हर
साल हुए बस थोथे ऐलान
उपभोक्ता बनकर रह गया
बस अब समूचा हिंदुस्तान
डालर की तुलना में हो गया
क्यों रुपया इतना कमजोर
इस सवाल का उत्तर देने की
बजाय वो लेते हैं मुंह मोड़
साल दर साल बढ़ा विदेशी
व्यापार असंतुलन का ग्राफ
फिर भी सत्तानशीनों के मुख
पर नहीं कहीं चिंता का भाव
हे ईश्वर मेरे देश के लोगों को
देना समयानुकूल बुद्धि विवेक
आने वाले समय में वो उन्हें चुनें
जो दूर करे जन मन के सब क्लेश

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