कविताअतुकांत कविता
टूटा अभिमान चांद का
*********************
टूट गया अभिमान चांद का।
ये भारत चांद पर उतर गया।
अपनी सुन्दरता पर इतराते।
उस चांद का भांडा फूट गया।
अब कोई बच्चा न मचलेगा।
मां से चन्द्र खिलौना लेने को ।
अब ये कोई प्रेमी नहीं कहेगा।
मेरी चन्द्र मुखी महबूबा हो ।
धन्य ये भारत देश हुआ अब।
धन्य हुए इस देश के विज्ञानी।
आखिर दिखला डाला सबको।
मैं भी कुछ हूं इस धरती पट पर।
मैं हूं, सब कुछ कर सकता हूं।
आ जाऊं जो मैं अपने पर तो।
सूरज पर भी चढ़ सकता हूं।
मुझको यदि ललकारेगा कोई।
तो सागर को मथ सकता है ।
सौ बार नमन प्यारे देश तुम्हें।
नमन तुम्हारी इस क्षमता को ।
जय प्रकाश श्रीवास्तव" पूनम "