Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
जन पक्ष में लेखनी चले - umesh shukla (Sahitya Arpan)

कवितागीत

जन पक्ष में लेखनी चले

  • 57
  • 3 Min Read

सुकून की तलाश में
चलते रहे दिन रात
अब तक मिला नहीं
उसका ठीहा अज्ञात
हर दिन ढलने के बाद
मन को देते हैं दिलासा
कालांतर में शायद छंटे 
मेरे जीवन का कुहासा
ग्रह गोचर का असर है
अजब अपनों से हूं दूर
एकाकीपन भरा जीवन
मेरा नियति को भी मंजूर
अध्ययन और लेखन के
प्रति बचपन से आसक्ति
पूर्व जन्म के कर्मों से ही
मिली शायद ये अनुरक्ति
आदिदेव शिव से नित एक
अर्ज़ करता मैं बारंबार
जन पक्ष में लेखनी चले
सतत, उत्साह हो अपार
क्षेत्र, समाज और देश के
मुद्दों की हो सही पहचान
पूर्वाग्रहरहित होकर लिखूं
जन जन के दुख दर्द तमाम

IMG_20230818_150951958_HDR_1692899862.jpg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
1663935559293_1726911932.jpg
ये ज़िन्दगी के रेले
1663935559293_1726912622.jpg