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मुकम्मल कभी सपने नहीं होते - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

मुकम्मल कभी सपने नहीं होते

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जितनेचाहे जीभरकर देखो बशर
मुकम्मल कभी सपने नहीं होते,

किराये की ज़मीन पर बनाए हुए
मकान कभी अपने नहीं होते!

डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"
२३/०८/२०२४

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