कवितालयबद्ध कविता
यादों के साथ सफर
सुबह से शाम
शाम से सुबह हो जाती है
तब भी आप की याद आ रही थी
अ्ब भी सताती है |
इन यादों का क्या करें
यह तो आती जाती है
हम जिन्हें याद करते हैं
वह सपनों में भी आने से कतराती है |
क्या करें हमसे जुदा है
हमारी यादों का सफर
फिर भी राहों में हम
कभी टकरा जाते हैं |
यादों से वास्ता है पुराना हमारा
यादों में हम कुछ भुला जाते हैं
वे ही तो हमारी जिंदगी के स्तंभ हैं
जो कभी कभी यादों में आ जाते हैं |
यह संभव नहीं कि
जिंदगी बिन यादों के गुजर जाए |
कल आज और कल
एक दूसरे के बिना सँवर जाए |
कृष्ण तवक्या सिंह
07.09.2020