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काश जन चेतना भरे कुलांचें - umesh shukla (Sahitya Arpan)

कवितागीत

काश जन चेतना भरे कुलांचें

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सत्ता की उत्कट चाहत तेजाबी
जन जन कुछ कहें चाहें वो कामयाबी
विपक्षियों के जड़ोच्छेद की बेताबी

राजनीति में झूठ का उत्कर्ष
गुम हो गया जन वेदनाओं का विमर्श
फरेबी दावों पर जताते हर्ष

पूंजीपतियों का विस्तृत होता जाल
समाजवाद की परिकल्पना अर्से से पड़ी निढाल
सार्थक बदलाव उलझा हुआ सवाल

बुद्धिजीवी सियासी खांचों में बंटे
अधिकारियों की फ़िक्र कोष कैसे जल्दी निपटे
मंजर इत ऊत दिखते अटपटे

काश जन चेतना भरे कुलांचें
सियासी सौदागरों का स्वप्न खंडित करा दे
सत्यमेव जयते रटेंगे सब प्यादे

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