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हर इंसान लगाता दांव - umesh shukla (Sahitya Arpan)

कवितागीत

हर इंसान लगाता दांव

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हर शय को दौड़ाता रहता
उसकी ख्वाहिशों का वेग
जो ख्वाहिशों को काबू में
रखे उसे सफलता विशेष
तन, मन, धन और समय
का हर इंसान लगाता दांव
विवेक के समुचित प्रयोग से
ही हासिल होते सही पड़ाव
बहुत ख्वाहिशें अनकही भी
अकस्मात हो जाती हैं पूरी
हर इंसान बरबस बतलाता
उसे दैव या नियति की मंजूरी
हे प्रभु मेरे मन मस्तिष्क को
रखिए सकारात्मकता से सिक्त
जरूरतों के दायरे को रखे वो
सदा विवेक से ही अभिमंत्रित

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