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बेरोज़गारी का प्रच्छन्न दैत्य - umesh shukla (Sahitya Arpan)

कवितागीत

बेरोज़गारी का प्रच्छन्न दैत्य

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मेरे प्यारे वतन को लग गई
धूर्त राजनीतिकों की नजर
स्वार्थकेंद्रिता की पराकाष्ठा
अब आती चहुंओर नजर
जनप्रतिनिधियों को फ़िक्र 
नहीं, जनता का क्या हाल
सत्ता मद में डूबीं मचक रही
देश के जन जन बहुत बेहाल
बेरोज़गारी बिल्कुल चरम पर
देश के युवा हैं बहुत निराश
सरकारें अपने स्तर पर कर नहीं 
रहीं रोजगार सृजन के प्रयास
रोज अपना आकार बढ़ा रहा है
बेरोज़गारी का प्रच्छन्न दैत्य
अनिश्चितता के भंवर में फंसा
पड़ा है पूरे भारत का भविष्य
जीडीपी का आकार बता रहा
देश में उत्पादन का सही हालात
पर सरकारें करती नहीं आर्थिक
हालात पर कभी सत्यता से बात
देश के अधिकांश लोगों को जब
तक नहीं मिलेगा सही रोजगार
तब तक विकास की बातें साबित
होंगी बस हवा हवाई ही बारंबार
देश के युवाओं को रोजगार देने
के लिए तय हो सही रणनीति
तभी सच में देश के विकास का
सपना ले सकेगा मूर्त परिणति
हे ईश्वर मेरे देश के राजनेताओं
को दीजिए समयानुकूल विवेक
वे युवाओं के रोजगार के लिए
बनाएं सही नीतियां तज टेक

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