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कवितानज़्म
दिल के तिरे अरमान और भी हैं जीने के सामान और भी हैं, इक जमीन पर ही नहीं क़ायनात से परे आसमान और भी हैं! कहने को तो कह सकते हो बशर रहने को जहान और भी हैं, शख़्स यहाँ मग़र कोई येह तो बताए के हिंदुस्तान और भी हैं! डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" १५ अगस्त २०२३