Or
Create Account l Forgot Password?
कवितानज़्म
बस कहने को है आदमी का ग़मख़्वार आदमी! चार-सू चारोंओर मग़र ग़मख़ोर बेशुमार आदमी! मयस्सर नहीं बशर आदमीको ग़मगुसार आदमी! निकालने को जाए कहाँ ख़ुद का ग़ुबार आदमी! ©️✍️ #बशर Dr.N.R.Kaswan Surrey:19/7/2023