कवितानज़्म
ये के हर इन्सान के अपने मज़हब हैं
इन्सानियत का कोई मज़हब नहीं है
इन्सान में जब तब कुछ हैवानियत है
हैवानियत का कोई मज़हब नहीं है
इन्सान में प्यार मोहब्बत ओ इश्क़ है
इश्क़ का अपना कोई मज़हब नहीं है
इश्क़ में रूमानियत ओ रूहानियत है
रूहानियत का कोई मज़हब नहीं है
हर मज़हब की अपनी हि कैफ़ियत है
कैफ़ियत का कोई भी मज़हब नहीं है
हक़ीक़त सच है सच की हैसियत है
खुद हक़ीक़त का कोई मज़हब नहीं है
मज़हब का अपना मुख़्तलिफ खुदा है
ख़ुदा का अपना कोई मज़हब नहीं है
©️✍️ #बशर
Dr.N.R.Kaswan
Surrey:15/7/2023