लेखअन्य
साहित्य अर्पण " चित्र आधारित " स्पर्धा । दिनांक- २८ /६/२०२३
शीर्षक- बचपन की बारिश
बचपन की बारिश का मज़ा ही कुछ अलग था । छाता और रेनकोट के साथ स्कूल से लौटते वक्त पैदल चलकर जब घर आते थे, तो बीच रास्ते में बहते पानी में पैर उछालकर पानी को उड़ाते थे, कागज़ की नाव बनाकर उसे पानी में बहाते थे । रास्ते में दोस्तों के साथ मस्ती करते करते घर पहोंचते थे । अगर बस और ऑटो रिक्शा से घर लौटते थे, तो खिड़कियों से बारिश को निहारते निहारते घर कब आ जाता था, पता ही नहीं चलता था । घर पहोंचकर हम फिर से बारिश में भीगने जाते थे । और शाम को परिवार के साथ, टीवी देखते हुए या फिर बिजली चली गई हो तो मोमबत्ती के प्रकाश में गरमागरम पकोड़ो के साथ चाई के मजे लेते थे । और सबसे मजे की बात ये थी कि - जब हम बरसते बरसात में स्कूल जाते थे और वहां जाकर जब पता चलता की आज स्कूल में छुट्टी है !!! तब जो खुशी के मारे हम घर लौटते थे, उसकी बात ही अलग थी । हम बरसते बरसात में फिर से घर लौटते थे और युनिफोर्म बदलकर टीवी पर कार्टून देखते देखते मम्मी ने पेक किया हुआ नाश्ता करते थे । और घर की खिड़की से बारिश और बादल के गरजने की आवाजें सुनते थे ।
बचपन की बारिश का घर में कुछ माहौल ऐसा होता था : बारिश आए तो सबसे पहला काम बाहर सूखे हुए कपड़ों को घर में लाकर सुखाना । पास में मोमबत्ती और टॉर्च रखना । घर में चने का आटा ज्यादा पिसवा के रखना : भजियें और पकौडी बनाने के लिए । स्टोर रूम में से रेनकोट और छाता निकालना । बचपन में रंगबेरंगी छाता लेने का बहुत ही क्रेज़ था, उसे लेकर बाहर बारिश में खेलने जाना । बारिश में नहाने के लिए पुराने कपड़े ही पहनना आदि । ये सब हमारे बचपन की बारिश का माहौल था । उस वक्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं थी, पर सुकून बहुत था । आज भी जब बच्चों को बाहर बारिश में खेलते देखती हूं तब बचपन की बारिश याद आ जाती है । अब ऐसी उछल कूद नहीं कर सकते, क्योंकि बड़े हो गए है और शरम आती है ।
- विशाखा मोठिया