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योगा होगा ….नहीं होगा ..? - Yogendra Mani (Sahitya Arpan)

लेखअन्य

योगा होगा ….नहीं होगा ..?

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योगा होगा ….. ?नहीं होगा …..?

(व्यंग्य)

हमारे मोहल्ले के लल्लू जी ,नाम के भले ही लल्लू लाल हों लेकिन हैं बड़े काम की चीज ।चुस्त,दुरुस्त ,फुर्तीले , समाजसेवा की भावनाओं से ओत प्रोत ……प्रवचन में इनने प्रवीण कि यदि इन्हें प्रधान मंत्री बना दिया जाए तो एक दिन में देश का काया कल्प हो जाए।
रोज़ प्रातः भ्रमण के बाद पास के पार्क में योगा करने के साथ साथ औरों को भी कराने का उन्हें इतना शौक़ था कि उन्हें कोई भी सज्जन व्यक्ति आस पास हाथ पैर हिलाते हुए दिख जाता तो तुरन्त उसे अपने पास बुलाते और योगा के फ़ायदों की लम्बी चोडी लिस्ट का प्रवचन कर उन्हें कल से नियमित ,उनके सान्निध्य में सही तरह से योगा सीखने का आदेश इस तरह पारित कर देते ,जैसे सरकार कोई बिल पारित कराने के लिए बिना विपक्ष को मौक़ा दिए ही सीधे हर्ष ध्वनि मत से पारित मान लेती है ।
हम भी एक दिन उनके मोहपाश में आ गए ,और हमने सपत्नी उनके योगा शिक्षा सम्मेलन में संख्यात्मक वृद्धि कर ही दी । रात को सोने से पहले सुबह सवेरे शय्या त्याग की चिंता लग जाती । क्योंकि पहले तो बिना किसी बंधन के प्रातः भ्रमण हो रहा था ।जब भी सुबह आँखे खुली , तभी उठे और चले गए I लेकिन अब उनके समय से बांधे थे । जैसे बचपन में,क्लास में देरी से पहुँचने पर देरी के कारणों की लिस्ट मस्तिष्क में रखनी होती थी ,अब वैसे ही एक बार फिर बचपन की क्लास की याद ताज़ा हो गई ।श्रीमती ने हमें समझाया कि इसमें हित तो हमारा ही है । इस बहाने नियमितता भी बनी रहेगी और स्वास्थ्य भी सही रहेगा ही ।अब श्रीमती समझाए और हम न समझें ऐसा कैसे हो सकता है ।
रोज़ सवेरे प्रातः भ्रमण के बाद हमारा योगा शुरू हो ही गया । कुछ ही दिनों में योग के साथ ही घर परिवार की बातें भी हो जाती थी ।
एक दिन बस यूँ ही हमने लल्लू जी पूछ लिया ,’आप अकेले ही आते हैं ,आपकी श्रीमती जी को भी साथ लाया करो । हमारा यह पूछना था कि उनके अन्तरमन की पीड़ा छलक गई ।बोले ,”बहुत प्रयास कर चुका लेकिन वो है कि कभी तैयार ही नहीं होती ,योगा के लिए।”
हमने तुरंत प्रश्न दागा ,” क्यों …..? आप तो जमाने भर को समझाते हैं फिर उन्हें समझाने में क्या …?”
वे धीरे से बोले , “वो पत्नी है हमारी ……बाहर वालों को समझाने में और पत्नी को समझाने में ज़मीन आसमान का अन्तर है ।सभ्य पुरुष दूसरे की बीबी को तो समझा सकता है लेकिन स्वयं की बीबी को समझना जैसे सत्ता दल द्वारा विपक्ष को समझाना।”
उनकी बात भी सही थी । यदि कोई पूछे की सबसे कठिन कार्य का नाम बताओ तो सो में से 99 लोगों का जबाब यही होगा कि स्वयं की बीबी को समझाना ही सबसे विकट कार्य है ।
अब इसी सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए एक दिन हमाने अपनी विद्वाता का प्रदर्शन करने की ठान ली और उनके सामने प्रस्ताव रखा कि हम हैं न , हम समझाएँगे आपकी श्रीमती को ।हमारे प्रस्ताव पर पहले तो उन्होंने ऊपर से नीचे तक हमारा अवलोकन किया फिर धीरे से बोले ,”आप कर पाएँगे ?”
‘क्यों नहीं’ हम तपाक से बोले जैसे हमने दूसरों को समझाने में पी एच डी कर रखी हो । फिर भी ,हमने बोल ही दिया ,तो अब कुछ करने की भी बारी थी । उन्होंने भी बड़ी आशा भारी निगाहों से हमारा निरीक्षण करने के बाद अनुरोध किया ,”तो फिर चलो ।”
हम भी मुँह उठाकर चल दिए हमारी श्रीमती जी के साथ क्योंकि कहते हैं कि प्रत्येक सफल पुरुष की सफलता के पीछे स्त्री का हाथ होता है ,इसलिए मैं भी भला अपनी सफलता के श्रेय से श्रीमती जी को क्यों दूर रखूँ।
अब हम जैसे ही लल्लू जी के घर पहुँचे तो देखा कि,भले ही सुबह के नो बज गए हों परन्तु लल्लू जी की लाजो के शयन कक्ष के द्वार पर भौर की किरण पहुँचने का समय अभी नहीं हुआ था। उनकी श्रीमती लाजो ,लाज की मारी अभी तक भी शयनकक्ष में निद्रा का आनन्द ले रही थी ।अब यदि आप सुबह सुबह नो बजे किसी की नींद में खलल डालोगे तो कुछ न कुछ अनर्थ तो होना ही था ।
हम बाहर सोफ़े पर ही पसरे हुए थे लेकिन अन्दर से आ रही मधुर ध्वनि से आभास हो गया था कि अन्दर तूफ़ान मचा है । फिर भी कुछ देर इन्तज़ारके बाद एक बेडोल सी महिला जैसी आकृति प्रकट हुई ।हम उनकी भृकुटी देख कर समझ गए कि मामला कुछ जटिल पड़ने वाला है । फिर भी आपसी परिचय के बाद लल्लू जी ने हमारे तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि ये बहुत अच्छे आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं और हमारे साथ ही योगा करते है । इनकी मैडम भी साथ ही योगा करती है ।
योगा शब्द आते ही हमने तुरन्त सवाल दाग दिया ,”आप क्यों नहीं आती योगा के लिए ? आप भी आया कीजिए लल्लू जी के साथ ,अच्छा लगेगा ।”
लाजो जी तपाक से बोली ,”क्यों……? क्या अच्छा लगेगा ….? क्यों करें हम योगा …….. ? योगा से क्या होगा ?”
हमारी श्रीमती मोर्चा सम्भालते हुए बोली ,” योगा से क्या नहीं होगा ……. इससे हम स्वस्थ और चुस्त रहते हैं..”
-“तो क्या मैं अस्वस्थ हूँ …..सुस्त हूँ ……?”
-“नहीं .. मेरा मतलब है कि आप बीमार नहीं होंगी ……. शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी …।”
-“कहाँ तक बढ़ेगी ………? रोज़ योगा करते हुए भी कोरोना ने इन्हें पटकनी दे दो थी एक महीने तक बिस्तर पर पड़े पड़े पंखे की पंखुड़िया निहारते रहते थे ।”
-“ऐसे तो कभी कभी हो जाता है, लेकिन योग से कोई जटिल बीमारी हमारे पास नहीं आती …… बुढ़ापा भी आराम से कट जाता है ।”
लेकिन लाजो जी बिना लजाए तपाक से बोली ,” तो क्या हम बुढ़ापे के लिए जवानी बर्बाद कर दें…….. बुढ़ापा जब आएगा , देखा जाएगा लेकिन अभी क्या ……..?लेकिन अभी जो जवानी है उसका क्या …….? आप तो रिटायर लोग हैं … कुछ काम धाम तो है नहीं ……. लेकिन इनके साथ मेरा समय क्यों बर्बाद कर रहे हैं……….?वैसे भी इनकी बुद्धि तो वैसे भी ख़राब है ।न जाने कौनसा भूत सवार है ……..? लेकिन आप तो समझदार लगते हैं।”
हमारी समझदारी पर प्रश्न चिन्ह लगने के बाद भी हमने हिम्मत नहीं हारी और सम्भालते हुए हम धीरे से बोले ,”आप तो बुरा मान गई ………?”
-“क्यों न मानूँ बुरा ………? अब कोई आपको सुबह सुबह नींद से जगा कर स्वास्थ्य की घुट्टी पिलाने लगे तो आपको कैसा लगेगा ……… नहीं जीना मुझे सो साल ……. भला क्यों जीना है लम्बी ज़िंदगी ………कम जीओ …. मगर आराम से जीओ …….। बीमार होंगे तब देख लेंगे……..डाक्टर हैं न देखने के लिए ………. हमारे स्वस्थ की चिंता डाक्टर करेगा । हम क्यों पहले से ही चिंता में दुबले होते रहें।”
बात उनकी भी सही थी ।उनके तेवर देख कर हमने वहाँ से निकलने में ही समझदारी समझी ।
दूसरे ही दिन से लल्लू जी ग़ायब ………। लगभग एक माह बाद एक बार फिर उन्हें देखा तो लगा जैसे मुँह छिपाकर चुपके से निकलने वाले हैं । हमने ज़ोर से आवाज़ लगाई तो जैसे ही वे हमारी तरफ़ पलटे ,तो उन्हें देख कर हम हैरान ……..हाथ में प्लास्टर बंधा था ,चाल में भी कुछ लँगड़ाहट थी ।उनकी हालत देख हम प्रश्नवाचक दृष्टि से बोले ,यह क्या …..?कोई एक्सिडेंट हो गया ……?
लल्लू जी कुछ बुझे बुझे से बोले ,”हाँ एक्सिडेंट ही समझो ……उस दिन जब आप पधारे थे तो बाद में हमारे घर में ……………….”
उनकी ज़ुबान कुछ कह पाए उससे पहले ही हमने स्थिति को सम्भालते हुए कहा ,”लाजो जी तो ठीक हैं……..?”
ठंडी आह भरते हुए बोले ,” हाँ ठीक ही होंगी एक महीने से मायके में हैं …।”
उनके इस जबाब से हमारे गले में कुछ शब्द अटके ही रह गए ,”तो फिर योगा ……. होगा ….? नहीं होगा……।”

डा योगेन्द्र मणि कौशिक
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