कविताअतुकांत कविता
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स्व रचित मौलिक कविता
' मन्नत '
तेरे पास आना
तुझ से बातें करना
लगता है हूं जन्नत में
पूर्ण की हर मन्नत तुमने
कोटि-कोटि नमन करती हूं तुमको
जो मन्नत मांगी बचपन में
शनै -शनै सब पूर्ण हुई
हां , थोड़ी देर हुई
पर अंधेर नहीं हुई
जग के भोले बाबा हो
मेरे भगवन् , पिता , मित्र हो
अपनी खुशी , गम तुमसे
सांझा करना अच्छा लगता है
होता जब मन खुश या गमजदा
दौड़ी चली आती हूं तेरे दर पे
कर लेती हूं दिल हल्का तेरे दर पे
हे ! मेरे भोलेनाथ , त्रिपुरारी
यों ही तेरी कृपा बनी रहे मुझे पे
निसी-दिवस लबों पर
तुम्हारा नाम रहे
उर में तुम्हारा वास रहे
ना है अब कोई मन्नत शेष
ना है कोई अभिलाषा विशेष
उर्मिला यादव
मालड़ा
महेंद्रगढ़