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नज़रिया - Amrita Pandey (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

नज़रिया

  • 246
  • 6 Min Read

ए जिंदगी तुझको मैंने क्या-क्या नहीं कहा
कभी दर्द, कभी बोझ, कभी बेवफा कहा
कई मुकाम आए, जब नागवार गुजरी है तू
रुसवाई और जुदाई के लम्हों की दास्तां रही है तू
दिल टूट गया था, चिराग-ए -उम्मीद बुझ गया था
बहुत खोजा पर ज़ख्मों का मरहम ना मिला कहीं हमसफर मिला, मगर हमराज़ हमजु़बां ना मिला कहीं

दर्द के थपेड़े झेले, आंसुओं का सैलाब रोका
उम्मीद थी जब पार लगने की, तो मांझी दे गया धोखा
आईना देखकर घबरा गई थी मैं जब
अपने चेहरे पर पड़ा दर्द का साया देखा
उम्मीदों का दामन तार-तार था
मेरा अक्स सोगवार था।
मैं हार गई थी, मैं टूट गई थी,
लफ़्जों से बयांबाज़ी का ख्याल था झूठा
तन्हाइयों का दौर यूं बिखरा गया मुझे
शब भर सदा ए दिल रुलाती रही मुझे
गम का सैलाब दूर तक, कोई आस ना बाकी
आंखों में बस सुरूर था, मगर था नहीं साकी।
उलझन ये जिंदगी की बढ़ी जा रही थी तब
नाउम्मीदी का दौर चले जा रहा था जब।

एक आस कोहिनूर सी चमकी थी कहीं दूर,
साहिल-ए-उम्मीद जान कदम उठ गए उस ओर
मुद्दतों तड़प के बाद जाना हमने यह राज़
उम्मीद है एक सिलसिला, थमता नहीं ये साज़
अब इश्क तुझसे हो गया है जिंदगी मुझे
बादल ए गम नहीं भटका सकेंगे अब मेरे कदम
जश्न ए जिंदगी को अब किसी की आरजू नहीं
मशाले बहार दिल में जला, आसां कर ली मसाफ़त मैंने।


अमृता पांडे
हल्द्वानी नैनीताल
देवभूमि उत्तराखंड

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Sarla Mehta

Sarla Mehta 4 years ago

Behtarin

Amrita Pandey3 years ago

बहुत-बहुत आभार आपका आदरणीय

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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