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कुदरत कुछ कहती है - Anju Gahlot (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

कुदरत कुछ कहती है

  • 109
  • 7 Min Read

#साहित्य_अर्पण_एक_पहल_अंतरराष्ट्रीय_मंच
#पुस्तकवालाआयोजन
#दिनांक - 14-4-2023
#विषय - मुक्त
#"कुदरत कुछ कहती है"(कविता)
शीर्षक- "कुदरत कुछ कहती है"

वसुधा के नर नारी तुम से मेरा एक सवाल है
क्यों रूठे हो मुझसे?तुमको मेरा नहीं ख्याल है

अंबर भू पर तेजाबी वर्षा करने की सोच रहा
छेद हुआ ओजोन परत में परिवेश मुंहजोर हुआ
तरस खाओ हालत पर मेरी,मन में बचा बवाल है
वसुधा के नर-नारी तुम से मेरा एक सवाल है

खनन किया है निशदिन तुमने,चीर दिया है सीने को
धरती का तन घायल करके,तरस रहे अब जीने को
पर्वत काटे बांध बनाए,ताल,नदी बेहाल हैं
वसुधा के नर-नारी तुम से मेरा एक सवाल है

सुबह-सुबह प्यारे पंछी तब,मीठी तान सुनाते थे
अपनी-अपनी बोली में, आकर वो हमें जगाते थे
गौरैया गायब हैं सारी, बिछे तार के जाल हैं
वसुधा के नर-नारी तुम से मेरा एक सवाल है

नीड़ बनाकर नहीं लुभाते,पंछी अब तो पेड़ों को
कूलर एसी पर बैठे वे,झेलें गर्म थपेड़ों को
आए दिन अतिवृष्टि कहीं तो पड़ता कहीं अकाल है
वसुधा के नर-नारी तुम से मेरा एक सवाल है

सोन चिरैया कोकिल,मैना वृंतों पर न थिरक रहे
तितली भंवरे कीट पतंगे उपवन से ही सरक रहे
आए दिन अतिवृष्टि कहीं तो पड़ता कहीं अकाल है
कली फूल सब उदासीन हैं,मन में बड़ा मलाल है
जो कुदरत को खुश कर पाए कहां छुपा हो लाल है?
वसुधा के नर-नारी तुम से मेरा एक सवाल है

मूक पशु जलचर बेचारे,जीते हैं होकर लाचार
चरागाह में पनप रहे हैं अब तो पाषाणी व्यापार
गिद्ध हुए सारे गुम अब तो,अजब समय की मार है
वसुधा के नर-नारी तुम से मेरा एक सवाल है

________
रचयिता-डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली

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