लेखअन्य
विधा-संस्मरण
नहीं भूला जाता
बात 1जून की है।मेरे दोस्त के पिता जी की अचानक दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। सभी घर वाले बहुत हैरान रह गए कि एक दम से वे हमें छोड़ कर जा सकते है।
जब मुझे भी पता चला तो एक दोस्त की गाड़ी मंगवाईं और चल दिए उसके पास।
जब वहां पहुंचे तो उनको दरवाजे के अंदर लिटाया हुआ था सफ़ेद चादर डाल कर।उस वक्त सिर्फ़ तीन ही पुरूष बैठे थे।मेरा दोस्त, उसके मामा जी और रिश्ते में लगने वाले फूफा जी। मैं सिर्फ इतना ही पूछ पाया बड़ी मुश्किल से कि ये सब अचानक से कैसे हो गया।क्योंकि दो दिन पहले तो मैं वहाँ जाकर ही आया था।इसलिए मैं भी हैरान।
अंतिम संस्कार की पूरी तैयारी करने के बाद जब शव को उठाने की बारी आई तो एक आदमी अंदर से मेरे दोस्त की विधवा मां को बाहर लेकर आया ।मैं सब देख रहा था।उसने शव के मुँह से कपड़ा उठाया और उनके दोनों हाथों को पकड़ कर शव की छाती पर कलाइयों में पहने चूडियों को फोड़ दिया।उस दृश्य को देख कर मुझे सच में ही बहुत रोना आया। वो बेचारी जैसे -जैसे चूड़ियां फूट रही थी, वैसे -वैसे वो चीख चीख कर रो रही थी। वो सिर्फ़ उस भेड़ के समान लग रही थी जो अपने बच्चे को सामने से ले जाते हुए देख रही होती है और कुछ नहीं कर पाती।
वो भी अपने हाथों को सामने किये रही और वो आदमी उसके पति की छाती पर चूडियों को फोड़ता रहा।
कितना दर्दनाक होता है किसी औरत की चूडियों को फूटते हुए देखना ओर उस दर्द को महसूस करना।
वो दिन जब भी याद करता हूँ तो वहीं मंजर सामने आ जाता है। हाँ! नहीं भूला जाता वो दर्दनाक मंजर।
सन्दीप चौबारा
फतेहाबाद