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कविता
शीर्षक -जिंदगी
ए जिंदगी तू ही बता
तुझ पर क्या लिखूं !
कभी तू अनसुलझी
पहेली सी लगती है
तो कभी बचपन की
सहेली सी
कभी तुम मां के
कोमल स्पर्श सा लगती है
तो कभी पापा के
डांट फटकार सी
कभी तू गुरु बनकर
उपदेश देती है
तो कभी हमसफर बनकर
मेरे साथ -साथ चलती है
कभी तू शिक्षक बनकर
इंतहान लेती है
तो कभी विद्यार्थी बनकर
जीना सिखाती है
कभी तो तू मुझे नदियों की
निर्मल धारा सी लगती है
तो कभी आकाश में
उड़ते परिंदे सी
कभी सावन की हरी-भरी
वसुधा सी लगती है
तो कभी पतझड़ की
उजड़ी हुई डाली सी
कभी कान्हा के सुरीले
बंसी सी लगती है
तो कभी राधा के
निश्छल प्रेम सी
कभी मीरा की अथक
प्रतीक्षा सी लगती है
तो कभी बच्चों के
दंतुरित मुस्कान सी
कभी भूल भुलैया
सी भटकाती है
तो कभी गणित के
प्रश्नों की तरह उलझाती है
जिंदगी तू ही बता
तुझ पर क्या लिखूं!!!!!!!
अंजनी त्रिपाठी
स्वरचित मौलिक
04/09/2020