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कहानी, कविता व व्यंग्य रचनाएं - vinod nayak (Sahitya Arpan)

कहानीहास्य व्यंग्यप्रेरणादायकलघुकथा

कहानी, कविता व व्यंग्य रचनाएं

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कविता
रामभक्त

श्री हनुमानजी
कर्म धर्म सब कुछ प्रभु मेरा
तेरे चरण में ही ध्यान लगाऊं
मेरा संकट कब मेरा रहा
जब प्राण निकालके तुझको चढ़ाऊं
प्रभु राम जपूं, प्रभु राम जपूं,
सियाराम जपूं, श्री राम जपूं

माता शबरी
मैं ही नहीं प्रभु पुष्प की आशा
ना वो मुरझाए न मैं मुरझाई
वो जो बिछे तो मैं भी बिछी
तब जाके प्रभु श्री चरण को पाई
प्रभु राम जपूं, प्रभु राम जपूं
सियाराम जपूं, श्री राम जपूं

ऋषि वाल्मीकि
मैं निष्ठुर था मैं पापी था
कब क्षमा योग्य मेरे पाप रहे
वाणी में जब तुम मरा बसे
तब तारणहारा राम मिले
प्रभु राम जपूं, प्रभु राम जपूं
सियाराम जपूं, श्री राम जपूं

गोस्वामी तुलसीदास
मेरा प्रभु जब जन्म हुआ
तब भी था जिव्हा पर नाम तेरा
जपते ही रहा तेरा नाम प्रभु
तब रामचरित सा काम किया
प्रभु राम जपूं, प्रभु राम जपूं
सियाराम जपूं श्री राम जपूं

भैया भरत
मैं राजा अयोध्या कब ही रहा
जब शीश खड़ाऊ अपने धरा
मैं तो कुटिया में भक्त ही रहा
पूरा राजपाट तुमसे ही चला
प्रभु राम जपूं, प्रभु राम जपूं
सियाराम जपूं श्री राम जपूं

विनोद नायक
नागपुर
8605651583


व्यंग्य

॥ कायेको झगड़ा भैया,
करो सबसे प्रीत रे ॥

झगड़ा हो तो उसकी जड़ भी हो वरना बिना जड़ के झगड़े ऐसे होते जैसे बिना मतलब के कुत्ते के मुँह में डण्डी चलाना। जब डण्डी चलाअोगे तो कुत्ता भोंकेगा ही । भोंकेगा अौर हो सकता है काट भी ले । अौर जब काट लेगा तो इलाज भी भारी पड़ेगा । जबकि कुत्ता रातभर आपके दरवाजे पर मुस्तैदी से रखवाली कर रहा था। हमारा तो यही कहना है कि बिना वजह डण्डी चलाना ही क्यों? और डण्डी चला दी तो वहाँ खड़े क्यों रहना?

लेकिन कुछ लोग आपको भडकायेंगे कि यह कुत्ता कोई काम का नही । बस खा कर पड़ा रहता है। इसे क्यों पाल रखा है? इसके लिए कुछ कानून बनाओ। इसे बाँधकर रखो। इसे सुबह शाम गिनकर रोटी दो। इसे ज्यादा छूट देने की जरूरत नही।इस से इसका स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा अौर क्रियाशील भी रहेगा।आपने कानून बना डाला। मतलब कुत्ते के मुँह में डण्डी चला ही दी।

भाई साहब घर - परिवार ,मोहल्ले समाज में ऐसे कानूनों से ही तनाव बढ़ रहा है। तुम देर तक क्यों सोते रहे? तुमने बिजली बिल जमा क्यों नही किया ? तुमने गिफ्ट लेना कैसे भूल गये ? तुम्हें बात करने का तमीज़ नही है। तुम्हें बड़ों की इज्ज़त करना नही आती। तुम्हें खाना खाना तक नही आता। दिनभर मोबाईल में मालूम नही क्या करते हो ?कपड़े तो ढंग के पहन लो। उसकी तरफ ही क्यों देखते रहते हो ? मेरी साड़ी अच्छी नही लगी। मेरे बाल उस से सुंदर नही हैं क्या। मैं ही क्यों करुँ? मेरे मायके के बारे में अाप कुछ मत कहो। मेरा मुँह मत खुलबाओ जैसे वाक्यों से झगड़ा शुरू  हो जाता है तो फिर थमने का नाम नही लेता। चार दिन खाना खाना छोड़ देते हैं। बच्चे हैरान परेशान हो जाते हैं। बड़े बुजुर्गों के हाथ में कुछ रहता ही नही जो कुछ बीच में बोल सकें क्योंकि बोले तो वैसा ही होगा जैसे दो साँडों की लड़ाई में बागुड़ का टूटना।

मोहल्ले की गली में कचरा कैसे डाला ? कुत्ते को छी-छी कहीं अौर क्यों नही करा लेते ? ये कचरा भी गाडी़ में क्यों नही डाल दिया ?तुम्हारे बच्चों को मना करो यहाँ नही खेलें। शर्मा जी के घर की खिड़की का काँच टूट गया। तुम्हारी गाड़ी यहाँ मत लगाया करो। लडकों को यहाँ  खड़े रहने की क्या जुरूरत है। उसकी लड़की कैसे कपडे़ पहनती है? उसकी बहू क्यों नही आ रही ? उसकी सास कम नही है। उसका ससुर बाहर ज्यादा क्यों घूमता है? उसने मोबाईल में मुझसे कहा। वो तो फलां जाति का है। वो उस राज्य का है। वो तो बहुत झगड़ालू है। उस से बात करने आवश्यकता नही है आदि बिना मतलब के वाक्यों से शुरुआत होती है झगड़े की अौर अंत का कोई ठिकाना नही होता । लेकिन झगड़े की वजह हो या कुछ फायदा हो तो हम तो यहीं कहेंगे की खूब झगड़ा करो । खूब मारपीट करो या फिर जेल, अदालत जाओ ये छोटी मोटी बातों पर कायेको झगड़ा भैया। सबसे प्रीत क्यों नही करते ?

विनोद नायक
77- B , श्री हनुमानजी मंदिर ,पानी टंकी के पास ,
खरबी रोड़ , शक्तिमातानगर , नागपुर -440024
महाराष्ट्र ,
भारत
8605651583


कहानी
" काली थैली "
सड़क का डिवाइडर ही पागल भोलू का घर था। गर्मी हो या ठण्डी बस नीम के पेड़ से टिका रहता । मन ही मन इशारे कर पेड़ से बातें करता अौर खुश होता।
डिवाइडर पर हर रोज लोग बचा खाना डालते तो पागल भोलू उस को हाथों में इक्कठा कर खा लेता । कुछ लोग पॉलीथीन में भरके बचा खाना डालते तो भोलू पॉलीथीन खोलकर खाना खाता।
कभी कभी उसे कुत्तों से जरुर झगड़ा करना पड़ता था पर वह उन्हें भगाता लेकिन मारता कभी नही था। इसलिए कुत्ते भी जानते थे भोलू थोड़ा बहुत खायेगा फिर तो हमारा ही है।
आज बड़ी सी काली थैली में किसी ने कुछ डाल कर गया था। भोलू कुत्तों को भगाते हुए कह रहा था - " पहले मैं खाऊँगा, पहले मैं खाऊँगा।"
कुत्ते भोलू पर भोंक कर कह रहे थे - " नही - नही , पहले हम खायेंगे । "
एक तरफ थैली को कुत्ते खींच रहे थे तो दूसरी तरफ भोलू । दोनों अपनी - अपनी ताकत अजमा रहे थे। आखिर पागल भोलू ने बड़ा - सा पत्थर मारने के लिए ताना तो कुत्ते जान बचाकर , दुम हिलाने लगे।
पागल भोलू ने बड़ी मुश्किल से थैली की गाँठ खोली तो देख कर दंग रह गया । थैली से रोती चीखती कन्या को निकाल , सीने से लगाते हुए कहा - " तू भी कितनी पागल है सारी दुनिया छोड़कर मेरे पास आ गई , चुप हो जा , अब दुनिया तेरा कुछ नही बिगाड़ सकती "
भोलू के सामने ही कुत्ते खाली काली थैली को नौच नौच कर बुरी तरह फाड़ रहे थे ।

नवजात बच्ची भोलू के हाथों में आकर चुप हो गई। कुत्ते अपनी माँग करते भोंक कर आखिरकार चले गये।भोलू स्नेह से बच्ची को खिलाते हुए कह रहा था - " तू मेरी बेटी है, मैं तूझे पालूँगा , यहाँ बहुत खाना आता है।"

बच्ची फिर जोर - जोर से रोने लगी। भोलू ने कहा - " अब क्या हुआ ? " बच्ची रोई जा रही थी।भोलू ने कहा - " भूख लगी है ? " भोलू रोना बंद करने के लिए कभी सीने से लगाता तो कभी हाथों में लेकर झूलाता लेकिन बच्ची का रोना बंद नही हो रहा था।
भोलू ने सामने एक मकान का दरवाजा खटखटाया तो एक वृद्ध महिला निकली अौर भोलू के हाथों में बच्चा देख कर बोली - " भोलू ये किसका बच्चा उठा लाया । जा जाकर देकर आ। "
भोलू ने सहमते हुए कहा - " नही अम्मा , मुझे ये बच्ची नीम के पेड़ के नीचे काली थैली में मिली है । ये मेरी बेटी है। आप तो बस एक गिलास पानी दे दो तो इसे पिला दूँ। "
वृद्ध महिला ने भोलू के हाथों से बच्ची छीन कर बोली -" अरे अकल के मारे तू पानी पिला कर नन्ही सी जान की जान लेगा क्या ? चल , ला मुझे दे।"

भोलू ने बिना देरी किये बच्ची को छीन कर कहा -" नही ये मेरी बेटी है इसे कोई मुझे से नही ले सकता। तुम पानी देती हो तो ठीक वरना मैं दूसरे घर से जाता हूँ। "
वृद्ध महिला ने भोलू का एक हाथ कस कर पकड़ कर बोली- " रूक भोलू , मैं अभी लाई गाय का दूध , देखना कैसी बच्ची भूख से तडफ के रो रही है ?"

वृद्ध महिला ने एक कटोरी में दूध व चम्मच लेकर आई , भोलू के हाथों में ही वृद्ध महिला ने दूध पिलाना शुरू कर दिया। बच्ची ने रोना बंद कर दिया था।
वृद्ध महिला ने भोलू को समझाते हुए कहा - "भोलू बच्ची को मुझे दे दे , मै इसे दूध पिला दिया करुँगी । "

भोलू बोला - " मेरी जान ले लो पर इसे ना माँगो। " भोलू की जिद्द के आगे वृद्ध महिला की एक न चली । वृद्ध महिला ने पुलिस की भी धमकी दी पर भोलू पर कोई असर न पड़ा वो तो बच्ची को पाकर खुशी न समा रहा था। बच्ची को दोनों हाथों में उछाल कर खिला रहा था। मानो उसे जीने का मकसद मिल गया हो।

वृद्ध महिला ने डॉक्टर बुलाकर बच्ची को दिखाया । कुछ दवायें दी । कुछ कपडे़ दे दिये भोलू से कहा भी बच्ची मुझे दे दे । जब चाहे तू मुझसे ले जाना लेकिन भोलू बच्ची को किसी कीमत में छोड़ने को तैयार नही था।भोलू कहता - " बच्ची तो ईश्वर ने मुझे दी है । मैं दूसरों के हवाले कैसे कर दूँ। "

भगवान जब जिम्मेदारी देता है तो पागल को भी बुद्धि दे देता है ।दिन रात वृद्ध महिला बच्ची पर नजर रखती तो भोलू डिवाइडर के आसपास ही बच्ची को लेकर भीख माँगने लगा।जो भी रुपए उसे मिलते उसका दूध खरीद कर , बच्ची को पिला देता। वृद्ध महिला देख देख कर सभी लोगों से यही कहती - " जाको राखे सांईया मार सके ना कोय ।" वृद्ध महिला ने बच्ची का नाम हरसिध्दी रखा तो भोलू भी हरसिध्दी कहकर उसे खिलाता अौर मन ही मन फूला ना समाता।

दो सालों में बच्ची ने पेैरों से चलना शुरु कर दिया तो भोलू ने एक होटल में बर्तन साफ करने का काम शुरु कर दिया। वृद्ध महिला पर भोलू को भरोसा हो गया था इसलिए वह उसके घर भी छोड़ने लगा। पाँचवें वर्ष में हरसिध्दी स्कूल में होशियार होने के कारण सभी शिक्षकों की प्रिय हो गई। शिक्षकों के हर सवाल का जवाब तुरंत दे देती । कहते हैं ना ज्ञान को कौन कैद कर सका है । अपनी प्रतिभा के दम पर हरसिद्धि हर कक्षा में प्रथम तो रहती ही साथ ही साथ अपनी चंचलता व सक्रिय सांस्कृतिक कार्यक्रमों की भागीदारी से सभी शिक्षकों का मनमोह लेती । जब कक्षा बारहवीं में जिले में प्रथम आई तो एक संस्था ने उसकी पढ़ाई की जिम्मेदारी ले ली। मानो हरसिद्धि के ख्वाब को पर मिल गये हों। एमबीबीएस की पढ़ाई में अपना तन-मन झोंक रही थी हरसिद्धी ने अब एक डॉक्टर बन बेटियों को बचाने का कडा संकल्प ले लिया था।

कड़कड़ाती ठण्डी थी। भोलू ने रात भर बर्तनों को मांझा । हाथ अौर शरीर अकड़ चुके थे । सुबह फिर सर्द हवा में उठकर साफ सफ़ाई के काम में लग गया ।होटल मालिक के आने से पहले वह होटल में तैनात था। होटल मालिक को देखते ही भोलू ने राम - राम कहा अौर आँखों के सामने धुंधलापन छा गया जब तक वह संभलता वह धडा़म से जमीन पर जा गिरा। सामने रखे टेबल के कोने से सिर टकराया अौर सिर से खून बहना शुरू हो गया। होटल मलिक ने तुरंत उठाते हुए कहा - " क्या हुआ भोलू ?" लगातार खून बह रहा था।होटल के कर्मचारियों को आवाज दी अौर बिना समय गंवाये भोलू को अस्पताल पहुँचाया गया। भोलू का इलाज डॉ हरसिद्धी कर कह रही थी -" अब कैसे हो पापा । " भोलू की आँखों का धुंधलापन हटा व देखा तो कहा - " मैं कहाँ हूँ बेटी? "
डॉक्टर हरसिध्दी ने कहा -" आप अस्पताल में हो पापा , दादीमाँ ( वृद्ध महिला )का खून मैच हुआ तो आपको चढ़ा दिया।" सामने वृद्ध महिला ईश्वर से भोलू के स्वस्थ्य होने की प्रार्थना हेतु हाथ जोड़े खड़ी थी। भोलू ने कहा -"सच कहा बेटी , न जाने कितने जन्मों की हमारी माँ है।"

वृद्ध महिला ने मुस्कुराते हुए कहा-" मेरी तारीफ़ छोडो बेटा, तारीफ तुम्हारी बेटी की करो। इसने तुम्हारी जान बचा ली। "
दूर खड़ा होटल मालिक मन ही मन सोच रहा था - " मैं कितना अभागा हूँ जो इतनी होनहार बिटिया को काली थैली में डालकर पागल भोलू के सामने रख कर आ गया था। " उसके आँसू थमने का नाम नही ले रहे थे। पिता -पुत्री व दादी माँ एक दूसरे से मिलाप कर रहे थे ।इन्हें देखने के लिए बेड के चारों तरफ भीड़ लग गई थी। होटल मलिक भोलू के पैरों पर गिर कर बोला -"भोलू मेरा पाप माफ़ करने योग्य नही है मेरे भाई। अगर हो सके तो माफ़ कर देना , वो काली थैली मैंने ही . . । भोलू भैया तुम तो ईश्वर हो।" कहते - कहते हॉटेल मालिक के आँसू रूकने का नाम नही ले रहे थे।





विनोद नायक
77- B, श्री हनुमान मंदिर , पानी की टंकी के पास ,
खरबी रोड़ , शक्तिमाता नगर , नागपुर, महाराष्ट्र, भारत
440024
मोबाइल नं. 8605651583
लघुकथा

जीवन ही संघर्ष है

तितली उड़कर फूल पर जा बैठी अौर सुगंध लेकर बोली - " फूल बताअो तो इतनी सुगंध तुम कहाँ  से लाये हो ? "
फूल ने मुस्कुराकर कहा - " भूमि ने मुझे जगह दी , मैं अंकुरित हुआ । छोटा सा पौधा बना । फिर मुझे शक्ति दी । भोजन - पानी दिया । सूर्य ने मुझे बडा करने के लिए अपना प्रकाश दिया । मैं बडा़ हुआ तो मेरी सुरक्षा के लिए मुझ में काँटे आ गये। फिर कई दिनों के इंतज़ार के बाद मेरी डाली पर कली आई अौर कली ने धरती, पानी व सूर्य की गंध को अपने अंदर भरकर मैं फूल बनकर खिला तब जाकर ये सुगंध मैंने पाई है। "
तितली ने पंख फैलाकर कहा - " अच्छा, ये तो बहुत दिनों के परिश्रम से हुआ होगा। "
फूल ने पंखुड़ियाँ खोलते हुए कहा - " हाँ, ये तो है, बहुत बचते- बचते फूल बनकर खिल रहा हूँ। लेकिन, ये तो बताअो तुम इतनी रंग बिरंगी सुंदर कैसे बनी हो ? "
तितली ने पंख समेटकर कहा - " प्यारे फूल , मैंने भी इतना सुंदर रंग ऐसे ही नही पाया है । मैं पहले अंडा थी, फिर इल्ली बनी । मैंने प्रकृति में रहकर ककून बनाया । ककून में कई दिनों तक रह कर अपने पंख बनाये उनमें रंग डाला। ककून को बड़ी मुश्किल से मैंने तोड़ा तो मेरे पंख खुले अौर मैंने देखा कि मैं रंग बिरंगी हो गई हूँ। "
फूल ने हवा में झुलते हुए कहा - "वाह! बहुत सुंदर लेकिन तुम्हें भी बडा़ संघर्ष करना पड़ा, है ना।"
तितली ने फूल की गंध लेते हुए कहा - " हाँ प्यारे फूल, बिना संघर्ष जीवन नही होता। जीवन ही संघर्ष है।"
- विनोद नायक
77- B, श्री हनुमानजी मंदिर के पास ,
खरबी रोड़ , शक्तिमातानगर, नागपुर -440024
महाराष्ट्र, भारत
मोबाइल नं. 8605651583

ख़ामोश
खामोश हूँ  मैं जिंदगी
पर हारा नही हूँ जिंदगी

जितना सताया तूने मुझको
उतना हसा हूँ जिंदगी

भूखा रहा हूं मैं मगर
सच को ना छोड़ा जिंदगी

कांटे बिछाए तूने जितने
उतने हटाए जिंदगी

तूने मेरा दिल तोड़ा
अच्छा सिला है जिंदगी

जितना गिराया तूने मुझको
उतना उठा हूं जिंदगी

कब तक मुझे अज़मायगी
इरादे ना देखें जिंदगी

फूलों पे जो हैं तितलियां
उनको उड़ा ना जिंदगी

कैसे बनाया घोंसला है
उनको मिटा ना जिंदगी

खेतों में फसलें लहलहाई
उनको गिरा ना जिंदगी

जो अभी मझधार में है
उनको डूबा ना जिंदगी


विनोद नायक नागपुर
८६०५६५१५८३

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दादी की परी
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