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चाहता हूं - सोभित ठाकरे (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

चाहता हूं

  • 115
  • 3 Min Read

कुछ बदलाव करना चाहता हूं
आज से पहले जो ना कर सका
वो बात करना चाहता हूं
बैचेनी है दिल में
तो इस बैचेनी से मिलना चाहता हूं
मिलकर अपने वजूद से
लड़ना चाहता हूं
लड़कर जीतना चाहता हूं
जीत कर तुमको तुमसे ही चुरा कर
तुम्हें पाना चाहता हूं
पाकर तुम्हें आगोश में लेकर
अनकहे शब्द बयां करना चाहता हूं
महसूस करना तुम मेरी सांसों को
हर धड़कन तुम्हारे नाम करना चाहता हूं
और भी शेष है अवशेष ह्रदय में
इन अवशेषों को समेटना चाहता हूं
समेट कर हर एक खुशी का नगमा
तुम्हें अर्पण करना चाहता हूं

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