लेखआलेख
शरद मतलब, जोशी...
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टी टी नगर स्टेडियम के बीच गुजरता... हम क्रिकेट खेल रहे हैं अच्छे खासे सो खीसें निपोरता...शरद नाम का जोशी... मोटा सा चश्मा,तेज चाल, कभी कंधे पे झोला, कभी हाल बे हाल...मेरी गली के राजेश खन्ना लिखने वाले, यदि मुझे थोड़ा भी पता होता तो मैं लिख देता टी टी नगर स्टेडियम के प्राण नाथ..., या प्राण, या डेविड, या कि, प्रेम के दुश्मन प्रेम चोपड़ा...
फ़िर कोई बड़े आयोजन होने लगे नवाब साब के... बिशन सिंह बेदी, प्रसन्ना, गावस्कर, विश्वनाथ, चंद्रशेखर...नेट प्रैक्टिस पर... मेरे जैसे अगड़म तगडं बॉल उठा उठा देने लगे...
नार्थ एन्ड और साउथ एन्ड क्या होता है, पहली बार पता चला... सफ़ेद मर्सेडीज़ साउथ एन्ड के बडे लोहे के दरवाज़े से सट खड़ी होती थी, कोईबेगम उतर किसी टेंट में चली जाती थीं, कोई फेल्ट हैट लगाया एक दमदार सा आता था, तैमूर के बाप को उस वतानाकुलित टेंट में ले जाता था...
कर्सन घावरी बहुत स्मार्ट... तुरंत घुस अपनी जगह बना लेते थे और फ़ारुख इंजीनियर विकेट कीपिंग को सलामत कर लेते...
अरुणोदय प्रकाशन में उन दिनों ऑटोग्राफ लेने के लिए एक छोटी सी डायरी आयी थी. ..पच्चीस पैसा की एक ...
बहुतेरों के पास थे पर मेरे पास वो पैसे नहीं थे...
शरद जी वहीं कहीं अग्रवाल मेडिकोज की दवा के सामने खड़े थे और मेरी व्यथा समझ रहे थे, सिंघल साब को बोला "इस को एक औतिग्राफ बुक देदो, मेरी तरफ़ से..."
ख़ुद को साईन करना नहीं आता होगा भले, लेकिन दूसरों के ऑटोग्राफ मांगेगा... बुत का मजनू..
वे कुछ इस तरह फुसफुसाए...
ले, मैं लौट के आया और कोई नहीं बचा जिसका ऑटोग्राफ़ न लिया हो, भले वह अजीत वाडेकर...
पर शरद जी के हस्ताछर मैं कभी न पा पाया, उस पुस्तिका में न पा पाया...
पत्रकार भवन में उनकों दी जाने वाली श्रधांजलि सभा में उन अनेक माननीयों को समझ ही नहीं आ रहा था कि ये हो क्या गया, और क्या कहें...संस्कृति विभाग के स तो रेशमी कुर्ता यूं पहन आये थे, आंसू बहाने कि... अब किस माई के लाल में दम है... हम और तीर किनारे जाएंगे... नदी के बीच अब मुर्गे की टांग के साथ ग़ज़ल गुनगुनायेंगे...
विनम्र श्रद्धांजलि....