कहानीसामाजिक
3. धर्म
"अरे कहां से आ रही हो सुबह सुबह इतनी ठंड में?" मिनाक्षी ने घर के बाहर झाडू निकालते हुए आश्चर्यचकित होते हुए अपनी पड़ोसन सरोज से पूछा।
"चल चाय पीते हैं फिर बताती हूं।"
वह मिनाक्षी को हाथ पकड़कर अपने घर ले गई।
"यार आजकल काम मंदा चल रहा है।पंडजी ने बृहस्पति के व्रत करने और कुछ दान देने के लिये कहा है सो मंदिर जाकर आई हूँ।"उसने चाय की चुस्की लेते हुए कहा।
"दीदी सिलेंडर लेने आया हूँ ठेकेदार साब ने भेजा है।"तभी मजदूर ने आकर कहा।
"घर के लिये चाहिए या ऑफिस के लिये??"
"दीदी घर के लिये चाहिए, वो... घरवाली पेट... से है तो... चूल्हे पर तंग होती है।" मजदूर अटकते अटकते बोला।
उसने रसोई में पहले से लगा सिलेंडर उतार कर दे दिया और डायरी में लिख दिया -" 700 रू. मुकेश मजदूर को सिलेंडर दिया।"
"यार गरीब है बेचारा धर्म होगा। वैसे भी पंडजी ने दान करने के लिए बोला है।" सरोज ने मिनाक्षी की ओर मुखातिब होकर कहा।
मिनाक्षी सोच रही थी आधे सिलेंडर का पूरा रेट लगा कर ये कौनसा धर्म कर रही !!!
एमके कागदाना ©
फतेहाबाद हरियाणा