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किसी की मुस्कुराहों पे हो निसार - सु मन (Sahitya Arpan)

लेखअन्य

किसी की मुस्कुराहों पे हो निसार

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#__किसी__कि__मुस्कुराहटों__पे__हो__निसार



कितना आसान होता हैं ना ये कहना कि, " सुनो..!! तुम्हें जब भी कोई परेशानी हो ना मुझसे बात करना। मैं तुम्हारी हर बात आराम से सुनुंगी / सुनुंगा। तुम भरोसा कर सकते हैं मुझ पर। "


कितनी आसानी से कह दिया था ना हमनें और भुल भी गए। भूले भटके अगर कभी उस शख्स का कोई मैसेज काॅल आ जाए तो क्या हम सच में उसे सुनते हैं??? काॅल रिसिव ना हो पाए तब क्या हम बहाना बनाते हैं या सच बोलते हैं यही पर फैंसला हो जाता हैं कि हम कितना केयर करते हैं दूसरों के जज़्बातों की। कहने भर से सब ठीक हो जाता हैं क्या???

और फिर हमीं राग अलापते फिरते हैं कि भई कह देना चाहिए क्योंकि मन हल्का हो जाता हैं। सुनने के लिए क्या हम दिल से तैयार रहते भी हैं या नहीं इस मुद्दे पर कोई सवाल जवाब हैं ही नहीं।


पता हैं एक सर्वे के मुताबिक भारत में हर साल लगभग 1 से 1.5 लाख इंसान आत्महत्या करते हैं। ( यह आंकड़े पुराने हैं नए आंकड़े इससे भी ज्यादा होंगे) और इन आकडों में 68.7% लोग जो हैं वो 15- 44 आयु वर्ग वाले होते हैं।

15 साल के बच्चें को क्या सुझी कि आत्महत्या करली उसने। क्या समझ थी उसे अच्छे बुरे की, दुनियादारी कितनी देखी उसने इस पर कोई बात नहीं। सिर्फ यह कहा जाएगा कि वक्त बुरा था, उसकी साँस इतनी ही थी, भगवान की मर्जी आदि- आदि।


जो सुसाइड करता हैं ना उसके पीछे एक लम्बी एक कहानी होती हैं। वह जिस्मानी तौर पर मरने से पहले मानसिक तौर पर तिल - तिल कर हर रोज कई बार मरता हैं। कायराना हरकत कहते हैं सभी पर क्या किसी ने सोचा हैं कभी कि वह कितनी तकलीफ में था।क्या परेशानी थी उसे। नहीं बिल्कुल भी नहीं सोचा। बगैर सोचे समझे कुछ भी कह दिया जो दिल में आया वह।

क्या किसी ने इस पहलू की तरफ ध्यान दिया कि मरने से पहले वह किन परिस्थितियों से गुजर रहा था।

होमो सेंपियन्स ( आधुनिक मानव { जो आज के समय में हम हैं } ) की ख़ासियत ये हैं कि वह संवेदनशील, विचारशील और भावनाओ को समझने वाला हैं। यही ख़ासियत उसे दूसरों प्राणियों से अलग करती हैं।

मगर क्या सच में संवेदनशील हैं?? दूसरों की भावनाओं को समझते हैं???? कद्र करते हैं उनकी??


ये सब इसलिए लिखना पड़ रहा हैं क्योंकि हाल ही के दिनों में कुछ ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जिन्होंने ये सब लिखने को मजबूर कर दिया हैं।


बात अगर सुसाइड कि करे ज्यादातर मामलों में यह सामने यही आता हैं डिप्रेशन , अवसाद, मानसिक स्थिति ठीक न होना।


हर इंसान को एक ऐसा शख्स चाहिए होता हैं जो बेरोक- टोक उसे सुनने को तैयार हो और उसे हिम्मत दे। जज ना करे उसको। अगर आपके आस पास कोई ऐसा हैं जिसे आपकी मदद कि जरुरत हैं तब हाथ आगे बढा़ दे।

किसी का दुख सुनने से उसका दूख आधा हो जाता हैं। दिल खाली हो जाता हैं। उस वक्त जो मन - मस्तिष्क में उथल पुथल होती हैं वह कुछ हद तक शांत होती हैं।


पिछले दिनों एक मैसेज आया कि मेम आपसे बात करनी हैं। ज्यादातर मैं अनदेखा करती हूँ पर बार - बार रिक्वेसट करे कोई तब रिप्लाई देना पड़ता हैं। पता चला कि घर कि जिम्मेदारीयां सिर पर हैं, जाॅब हैं नही और अब सरकार से उम्मीद कैसी हैं सबको पता हैं।

एक बात पर मन ठहर गया कि लड़के रो क्यों नहीं सकते??? हमें भी दर्द होता हैं। हम क्यों चुप रहे और रहते हैं चुप तब घुटन होती हैं। मन करता हैं कि खत्म करले सबकुछ।

उफफफ्...
कितना पत्थर दिल होकर उसने ऐसा कहा होगा। क्या यही एक रास्ता हैं जिससे लगता हैं कि सब ठीक हो जाएगा???

नहीं है कुछ ठीक नहीं होगा। उल्टा मुश्किल परिवार वालों की बढ़ जाएगी। एक माता - पिता का अपनी संतान को खोना सबसे दुःखद घटना होती हैं। और जब संतान खुदकुशी जैसा कुछ करे तब तो जीते जी माँ बाप ....

जो कहते हैं कि मर्द को दर्द नहीं होता। लड़के रोते नहीं हैं वो सुन ले कि लड़को को भी दर्द होता हैं। लड़के भी रोते हैं और फूट फूट कर रोते हैं। दर्द का कोई लिंग, जाति -धर्म नहीं होता। वह कभी भी किसी के पास आ जा सकता हैं।


आप लड़के हो या लड़की। रोने का हक सबको हैं। आँसू आँखों से दिल तक का सफर तय कर गम को कम कर देते हैं। अगर कोई कहे कि मत रोना कभी तो यह संवेदनहीन होने की शुरूआत होगी।


अपना दुख ,दर्द ,तकलीफें सांझा करो उस शख्स से जो वास्तव में तुम्हारा हैं। जो दुनिया की तमाम बातें, उलझने, मुश्किलों से दूर रखकर सिर्फ और सिर्फ आपको सुनता हों। जो आपको वक्त देने में आना कानी न करे। वक्त बेवक्त हर वक्त जो मौजूद रहे आपके लिए उनसे अपनी उलझन सांझा करे।

खासकर लड़को के लिए यह कहना हैं कि रो लिया करो उस शख्स के सामने जो तुम्हें अपना समझता हैं जिसके लिए तुम खास हो। और जरूरी नहीं कि वह शख़्स कही बाहर मिलें वह घर पर भी मिल सकता हैं। अपनी माँ, बहन या दादी से अपना मन का कहो कि ये दुनिया सच में तुम्हें डराती हैं। कदम कदम पर इम्तेहान लेती हैं। कभी अपने बाबा से भी कह दिया करो कि नहीं संभाला जाता बोझ इतना। तनिक सांस लेने दो, जीना चाहता हूँ कुछ घड़ी खुद के लिए कुछ पल जी लेने दो ना।

देखना वो डांटेगे नहीं और गुस्सा भी नहीं करेंगे क्योंकि कभी कभी कह देना अच्छा होता हैं। वह कोशिश करेंगे तुम्हें समझने की। कयोंकि हर बार झगड़ा करके तो सब निपटाया नही जाता। कुछ बातों का असर प्यार से भी होता हैं।


और जो घर से दूर हैं वो अपने दोस्तों से सांझा करे। यकीन मानिए आपकी बातें राज ही रहेगी। कह देने से मन हल्का हो जाता हैं।


अगर आप भी किसी ऐसे शख़्स को जानते हैं जो बहुत परेशान हैं, किसी उलझन में हैं बात किजिए उससे।

आप दुनिया के लिए एक नंबर भर होगे, आंकडे होंगे पर किसी के लिए आप पूरी दुनिया हैं। अपने परिवार के लिए आप ही सबकुछ हैं।

जाने वाला एक इंसान नही जाता वह अपने एक एक पूरी दुनिया ले जाता हैं।


अच्छे श्रोता बनना सीखिए क्योंकि आपके आसपास बहुत ऐसे इंसान हैं जो आपसे बात करना चाहते हैं, कुछ सांझा करना चाहते हैं। एक पहल कीजिए कि आपकी वजह से किसी की लाइफ में कुछ अच्छा हो।


और सिर्फ कहिए ही मत करके देखिए अच्छा लगेगा।

अच्छा लगे तो शेयर जरुर किजिएगा।

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