लेखअन्य
उसने एक दिन कहा था मुझसे कि, " तुम किसी शख्स में अपना सुकून कभी तलाश न करना। फिर छोटी छोटी बातों में खुश होने के लिए भी उसकी हाँ का इंतजार करना पडे़गा "
और फिर देर तक मैं तन्हा बैठी सोचती रही कि क्या यही सच हैं???? एक दूसरे को जानते पहचानते, समझते, समझाते हम अपना वजूद भूला देते हैं। हम क्या हैं, कौन हैं, कैसे हैं यह सब हम भूल जाते हैं। और किसी अनजान शख्स का चेहरा हमारे जेहन पर अपनी छाप छोड़ जाता हैं। ना चाहते हुए भी हम कुछ कुछ उससे जैसे होने लगते हैं। धीरे धीरे शख्सियत का रंग हम पर चढ़ने लगता हैं।
अक्सर ये रंग इतने गहरे होते हैं कि छूटते ही नहीं। अपना मन, मन का कोई कोना, कोने के किसी तहखाने में लगे एक मकडी़ के जाल में उलझे हम तड़फते रहते हैं। लाख आवाज दो पर सुनने वाला कोई नहीं। कभी अचानक से ठंडी हवा का कोई झोंका आए तब दिल बेचैन सा हो जाता हैं।
हवा में घुली उसकी आवाज को कान सुनना चाहते हैं पर कुछ सुनाई नहीं देता, कुछ दिखाई नहीं देता।
एक ही शख़्स से बेइंतहा मुहब्बत और कभी उससे बेइंतहा नाराज़गी सी होने लगती हैं। नाराज़गी इसलिए कि उसे जरा सा भी ख्याल नहीं मेरा।
उफफफ् ये दिल के रिश्ते, ये रेशमी सी बातें, कोई अनजान शख़्स और उससे वक्त बेवक्त मुलाकतें। बिना डोर की पतंग के जैसे मन उडा़ चला जाता हैं उसकी तरफ। न रस्ता नजर आता हैं और ना मंजिल का कोई पता होता हैं।
कभी दिल कहता हैं बेफिक्र उड़ जाओ पर इतनी ही दूर जाना कि लौटना पड़े तब तुम्हें तकलीफ न हो। दिल कभी उस शख़्स की बातें दोहराता हैं जो सुकून, अपना हिस्सा, अपने मन की कही की बात करता हैं तो कभी बेफ़िक्री में शामिल होना चाहता हैं।
सब ख्यालों और सवालों को परे रख मैं सिमट जाती हूँ खुद में ही।
कौन शख़्स??? कैसा सुकून?? कैसी बातें ?? कैसा इंतज़ार??? किसकी खुशी??
कितनी उलझने और इनका हल कही नहीं। मन थकने लगता हैं , मैं आँखों को मूंदकर सो जाती हूँ।कोई ख़्वाब सिरहाने टकटकी लगाए देखता हैं मुझे और कहता हैं कि," सपने देखो पर उम्मीदें मत रखो किसी से। उम्मीदें हमें तोड़ देती हैं।"
अब आँखों में नींदे हैं, नींदों में ख़्वाब हैं, ख़्वाबों में एक वादी हैं ,वादी की धुंध में इक एक चेहरा हैं। चेहरा बरसों पुराना, जाना पहचाना सा हैं जिसे रोज मैं आइने में देखती हूँ। जिसके लबों पर खिलखिलाहट हैं और उसके खिलखिलाने की आवाज से वादी गुंज रही हैं।
सु मन
17/8/2022