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नकलची चमचे - Madhu Andhiwal (Sahitya Arpan)

कहानीहास्य व्यंग्य

नकलची चमचे

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नकलची चमचे ---
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नेता जी के मीटिंग हाल मेंआज तो घमासान मचा हुआ था । आज नेता जी को थोड़ा बुखार होगया बैसे आजकल वायरल चल रहा है पर चमचों में तो एक बैचेनी फैल गयी एक होड़ थी सब में जैसे तेरी कमीज से मेरी कमीज अधिक सफेद है। सब चमचे नेता जी की सेवा में लगे थे । कोई सिर दबा रहा था कोई पैर दबा रहा था क्योंकि सब टिकट के दावेदार थे । नेता जी को बाथरूम जाना था एक चमचे ने तो बिना देर किये नेता जी की चप्पले अपने कुर्ते से साफ की और नेता जी के पैर बहुत धीरे से चप्पलों के अन्दर डाल दिये बस नहीं चल रहा था अगर कोई डाक्टर कहता कि तलवे चाट कर बुखार उतर सकता है तो वह तलबे भी जीभ से चाट लेते ।
उनको देख कर रसोई की खिड़की से सारी छोटी चमच्चे बड़ी चमचों की खुशामद में लग गयी । वह सोच रही थी कि उनको बस स्टैन्ड में ही जगह मिलती रहे क्योंकि उनको निकाल कर बडे चमचे लटक जाते थे । यह सब देख कर सबसे बड़ा चमचा आराम से देख रहा था । वह सोच रहा वाह रे मानवी चमचे स्वयं तो शातिर हॊ अपने स्वार्थ के लिये तलवे भी चाट लोगे बल्कि इन रसोई के इन बेजान चमचों को भी नकलची और स्वार्थी बना दिया है।
स्वरचित
डा.मधु आंधीवाल
अलीगढ़

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