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" बेबी चांदनी " 🍁🍁 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिकप्रेम कहानियाँ

" बेबी चांदनी " 🍁🍁

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#शीर्षक
" बेबी चांदनी"
अंक ... ५ 🍁🍁

मित्रों पिछले भाग में आपने पढा ... ' ' चांदनी इस बार अपने मन में बहुत सारे प्रश्न लेकर आई है।
लेकिन यहाँ मम्मी की तबीयत खराब देख कर कुछ देर के लिए सब भूल जाती है... अब आगे ...
सूप ले कर मम्मी के कमरे में बढ़ती चांदनी के कदमों की ढृढ़ता देख कर रज्जो ने अपने दोनों हाथ जोड़ कर ईश्वर को धन्यवाद दिये ...
' हे ईश्वर आपकी बहुत कृपा है कि चांदनी बिटिया को 'रूपा' की नई माँ के रूप में अवतार दे कर भेज दिया है '
रज्जो भी उन्हीं गलियों से आई है जिनसे रूपा।
इसकी भी एक अलग कहानी है।
जब रूपा उन गलियों को छोड़ कर इस बिल्कुल अजनबी,
अंजाने प्रदेश में अनजाने लोगों के बीच अपने बलबूते अपनी छोटी सी बिटिया चांदनी को लेकर आई थी।
तभी 'अम्मी फूलबाई' ने रज्जो को उसके साथ कर दिया था यह कहते हुए कि...
" देख रज्जो मुझे तेरी जात का पता है ना औकात का,
लेकिन बुजुर्गियत के चश्मे से जो देखती हूँ तो ,
' तेरी भोली आंखों की शर्म और हयात् पर मुझे पूरा भरोसा है।
तुम मरते दम तक रूपा के साथ बनी रहोगी '
कहती हुई चांदी के सिक्कों से भरी पोटली उसके आगे फेंकती हुई दबी हुई पर कड़ी आवाज में कहा था,
' यह लो पकड़ो तुम इसे संभाल कर रखना आड़े वक्त के लिए।
गिन लो अच्छे से अगर तुम यहाँ रहती तो तुम्हारे पूरे जीवन की कमाई होती और खबरदार जो कभी रूपा का साथ छोड़ी तो '
खैर ... दिन बीतने के लिए होते हैं बीत रहे हैं ...
... कमरे के पर्दे को हटा चांदनी ने अंदर आ सूप को टेबल पर रख दिया है।
नीले बल्व की कमजोर रोशनी में मम्मी का चेहरा कितना निरीह और बच्चों जैसा लग रहा है।
जिनकी हर बात को वह आज तक आंखें मूँद कर कर मानती आई है।
लेकिन कुछ ऐसे सवाल भी हैं , जिनके जबाब उसे हर हाल में चाहिए।
उसने हाथ बढ़ा कर धीमी रोशनी वाली बल्व ऑफ करके ट्यूब लाइट जला दी है।
मम्मी को उठा कर सूप पिलाया फिर वापस लिटाने की कोशिश की।
मम्मी भी उसे देख कर मुस्कुराने की कोशिश कर रही है।
' बहुत थकान हो गई है बेटा लेकिन आज सोने का मन नहीं कर रहा है '
' आपने बतलाया क्यों नहीं ... आप तो हर हाल में इतनी मजबूत इतनी समर्थ थीं '
' वैसे आपको कुछ भी नहीं होने वाला है देखिएगा रिपोर्ट बिल्कुल सही आएगी।
' फिर मैं भी तो आ गई हूँ ना आपकी डॉक्टरनी बिटिया '
रूपा आंखे मूँद कर गहरी सांस ले रही है
उसे मालूम है आज कन्फेशन का दिन आ गया है।
-- चांदनी
' मेरे मन में कुछ सवाल हैं माँ जानती हूँ आपकी छाती पर भी वो बोझ जैसे ही होगें '
' मुझे सारा कुछ जानना है मम्मी उस पेटिंग और उसके पीछे छिपे राज का '
' आ जाओ, मैं तुम्हें सब कुछ बता कर अपने सीने पर रखे सारे बोझ हल्के कर लूँ मैं कब से तुमसे बातें करना चाहती थी '
' बहुत छोटी थी तुम तब तक तुम्हारी नानी को घर में आने देती थी क्योंकि तब तुम कुछ समझती नहीं थी '
' फिर एक बार जब उनके आने पर तुम्हारी मासूम आंखों में मुझे छिपे सवाल दिखे ... तब से मैंने उन्हें अपने घर आने से मना कर दिया था '
' सोचती थी पहले तुम किसी भी अनहोनी को आत्मसात करने की काबिल हो जाओ तब बताउंगी '
' आज पहली बार लग रहा है। तुम बड़ी हो गई हो तुम्हारी आंखों में शंकाओं के काले बादल छाए हुए दिख रहे हैं मुझे'
चांदनी सोच रही है ...
बड़े होने की यह कीमत है... कोई और विकल्प होता तो वो कभी यह राह नहीं चुनती ।
लेकिन कुछ बातों की जानकारी सिर्फ़ और सिर्फ़ मम्मी को ही है।
फिर क्या करे वह वो तस्वीर वाली... नन्हीं बच्ची की छवि कचोटती रहती है उसे हर वक्त...' ।
मम्मी का सिर सहलाते हुए वह उनका चेहरा देखती है।
' हाँ बेटा ... वह तस्वीर वाली लड़की और 'फूलबाई ' यही ना ... ? '
मम्मी ने उसकी आंखो से झांकते सवाल को पढ़ लिया है।
कमरे में पसरी खामोशी में घड़ी की टिक-टिक साफ सुनाई दे रही है... जिसके बीच
माँ सीधे चांदनी की आंखों में देखती हुए सारी वर्जनाओं को तोड़ दिया ... ,
' जानती हो बेटा किसी भी बात या घटना को 'याद' रखना और 'भूलना' सायास होता है ,
सिर्फ़ अपने बचाव के लिए
'अनायास ' होते ही यह हमें खतरे में डाल देता है बेटा '
मम्मी अपनी आवाज पर काबू रख कर कह रही हैं ,
'फूलबाई' और उस नन्हीं लड़की की कहानी ...
फूलबाई बेहद सुन्दर थी। जवान थी। नाचती भी कमाल की थी।
बस एक ही कमी थी उसकी , उसका गला थोड़ा भारी था।
जिसे साजिंदे किसी तरह संभालते और फूलबाई खुद ही इस कमी की भरपाई करती।
महफिलों में वह इतना टूट कर नाचती कि साथ देने वाली सहायिकाएं भी थक कर धराशायी हो जातीं।
लेकिन फूलबाई नहीं थकती।
उसकी ख्याति बनारस से लेकर लखनऊ तक फैली थी।
वो सेठों और नवाबों की चहेती बनकर उनके मजलिसों में नाचा करती।
चांदनी सांस रोक कर मम्मी की बातें सुन रही है...
' उस दिन भी वह कत्थक के परण में चक्कर लगा रही थी जब पीतल का एक बड़ा सा नक्काशीदार गमला ल़ुढ़क गया था।
जिसके ठीक पीछे 'रूपा' इकहरे बदन की दुबली-पतली नन्हीं रूपा खड़ी हो कर फूलबाई का थिरकता बदन देखने में तल्लीन थी।
उसे लग रहा था जैसे माँ नहीं किसी परी को नाचती हुई देख रही है।
यह सच है बेटा,
तब की रूपा ही आज तुम्हारी माँ है।
बहरहाल...
गमले के लुढ़कने से भयभीत ,सहमी सी रूपा मखमली मोटे पर्दे के पीछे सांस रोके छिपी थी।
इधर महफिल में जो अपने पूर्ण यौवन पर थी, सन्नाटा छा गया था।
उसी महफिल में बैठे फूलबाई के एक पुराने मुरीद सिरफिरे चित्रकार ने
अपने रंगो से कागज पर फूलबाई की उस अप्रतिम छवि को हूबहू उतार दिया।
ऐसा कहते हैं !
अपनी फाकाकशी़ के दिनों में उस चित्रकार ने उस चित्र की बोली खूब उँचे दामों में लगाई थी।
शायद तुम्हें वही चित्र कहीं दिख गया है ना बेटा ?
इसके बाद सेठ ने आँख के इशारे से फूलबाई को नृत्य को फिर से वहीं से उठाने का आदेश दिया जहाँ पर रूका था।
फूलबाई भी अति कुशलता से नृत्य को उसी ताल से उठाकर वापस चक्कर लगाने लगी।
सारी महफिल "वाह-वाह " कर उठी।
नन्ही रूपा ने अपनी पलक बिना झपकाए एकटक फूलबाई को देखे जा रही थी ।
खैर दिन बीतने के लिए होते हैं बीतते जा रहे थे।
लाड़-दुलार से भरी फूलबाई ने रूपा को भी नृत्य सिखाने के लिए मास्टर रख दिए थे लेकिन रूपा को नृत्य के प्रति जरा सी भी रूचि नहीं थी।
उसका गला अपनी अम्मा फूलबाई के विपरीत बेहद मीठा था।
वह जब गाती तो लोग अपनी राह चलना भूल जाते।
उसकी गुनगुनाहट भरी रागिनी श्रोताओं पर फूलझड़ियों की तरह झड़ती।
गीत ही उसके प्राण थे।
उसके स्वर में सागर की आकुलता थी।
अपने मीठे स्वर में जब वह गाती ...

" तेरी तिरछी नजर से मैं कैदी बनी हूँ"

सभी उसकी माँ फूलबाई से कहते ,
" अब तू नाचना छोड़ दे फूलबाई बिटिया की दौलत से ही तू रानी हो जाएगी "
लेकिन ईश्वर को तो कुछ और ही मंजूर था, उसे मेरी गोद में तुझ जैसी प्यारी को भेजना था बेटा... "
जाने किस उर्जा से भरी हुई मम्मी इतनी सारी बात बिना रुके हुए बोल रहीं हैं।
" मेरा कोई अपना घर ,वजूद और कोई अर्थ नहीं था बस जो फूल बाई कहती उसी का अनुसरण करती जाती "
चांदनी सरक कर बिस्तर पर बैठ गयी।
रूपा ने दोनों बांहें फैला कर उसे अपनी ओर खींच लिया,
" तुझे दुनिया की हर खुशी देना चाहती हूँ चांद पर आज यह हम दोनों के बीच कैसी विपदा की कैसी दूरी खिंचती चली जा रही बेटा "
" लगता है मुझे कहीं मैं शनैः-शनैः क्षीण होती हुई तुझसे दूर ना हो जाऊं "
नहीं मम्मी !
मैं आपको कुछ नहीं होने दूंगी लेकिन मुझे यह बताएं फिर रुपा का क्या हुआ
बताती हुई माँ यहाँ रुक गई थी।
सन्नाटा गहरा गया था।
चांदनी डर गयी माँ की इस समय बीमारी के समय उन्हें कोंच कर सालों की चुप्पी और संयम को तोड़ने की उसकी असावधानी भरी जिद कहीं खतरनाक ना हो जाए ?
लेकिन नहीं, उसने मम्मी को कभी इतनी कमजोर नहीं पाया है।
झुक कर उनका चेहरा सहलाते हुई... मुझसे बातें करिए मम्मी आप बेहतर महसूस करेंगी ,
वो तो है बेटा ,
पर इतने लंबे जीवन की बातें बताना अंधेरी सुरंग ... में से गुजरने जैसा ही है "
फिर गहरी सांस भर कर ...
फूलबाई सात पुश्तों से महफिलें सजाने वाली, नाचने वाली थी। इसी माहौल से जीवन रस खींच कर रूपा फली फूली थी।
वह उस वक्त उम्र के जिस दौर में थी।
मालती लता की तरह उसकी जवानी फलफूल रही थी।
उसकी बड़ी और काली-काली आंखों में हर वक्त रहता इंतजार रहता।
उसका मन इस रँग-रास के माहौल में बिल्कुल नहीं रमता फूलबाई के कड़े निर्देश के बाबजूद भी संगीत के अलावे उसने अपनी मर्जी से पढ़ना-लिखना सीखा था।
सच पूछो तो व्यक्तिगत तौर पर वह इस सबसे दूर होना चाहती थी। वह हर समय अपनी ही दुनिया में रहती।
इस कारण से उन माँ -बेटी के रिश्ते के बीच काँटा धंस गया था।
जब तक गाने का कहीं दूर से बुलावा नहीं आता रूपा हारमोनियम या अन्य वाध्ययंत्र नहीं उठाती।
अम्मा में लाख बुलावे भेजने पर भी उनकी महफिलों में शरीक नहीं होती।
उसके खून में प्रेम दीवानी की व्याकुलता थी।
हर बार हमीरपुर के उस एक धनी नवयुवक के आमन्त्रण मिलते ही उसकी छटपटाहट देख कदाचित फूलबाई उसके उस नवयुवक के प्रति उपजते कोमल भाव को ताड़ गयी थी।
फिर भी फूलबाई उस पर किसी तरह की जोर जबर्दस्ती नहीं कर पाती थी।
उसके मन में पनपती प्रेम के अंकुर को पहचानती उसे हमेशा समझाती रहती ...
' बेटी मुहब्बत के फंदे में कभी मत फंसना इसी के फंदे में फँस कर हमारी लड़कियां बेमौत मारी जाती हैं ...
इससे तो अच्छा होता किसी साधारण आदमी के साथ गृहस्थी बसा ले... क्यों ऐसी गलती कर रही है ? '
' जानती है ,खोकन उस दिन अनजाने में फूलबाई द्वारा कही बात को रूपा ने अपनी गाँठ में बाँध ली ... "
कहती हुई मम्मी की आवाज घरघराने लगी है।
अचानक वे पूछ बैठीं ?
तुम्हें वो सुनहरे फ्रेम वाले अंकल की याद है बेटा ?
बहुत पहले देखा ... था कभी बचपन में उन्हें सालों ... साल पहले उनकी गोद में बैठ कर बड़ी सी गाड़ी मे चौक बाजार तक घूमने जाती थी तब बहुत नन्ही सी बच्ची थी।
फिर एक दिन उनके कार ऐक्सिडेंट में गुजरने की खबर आई थी।
' जानती है बेटा रूपा ने अपनी माँ की बात नहीं मानी थी '
उसमें प्रेम के आत्मसमर्पण की कामना जागी थी उसे लगता था चांद कभी नहीं डूबेगा पक्षी कभी नहीं गाना बंद करेगें ,
इसलिए शायद उसे सब कुछ लुटाए बगैर तृप्ति नहीं मिलेगी '
फिर एक बार जो वह हमीरपुर बुलावे पर गयी तो वहीं के उस नवयुवक
'हरिचरण मजुमदार' की विह्वल आंखों में अपने प्रेम के सपने को पूरा होते देख कर उसका प्यासा हृदय निश्चिंत हो गया था।
और इसी निश्चिंतता भरे क्षण में उसने
हरिचरण के नाम के कंगन पहन समर्पण कर दिया।
करीब एक महीने तक उसके नहीं लौटने इंतजार करती फूलबाई ने उसकी खैर खबर लेने अपने कारिंदे को हमीरपुर भेजा था।
जहाँ रूपा को अलग ही रूप में देख कर वे लौट गये थे।
फूलबाई ने कलेजे पर पत्थर रख उमड़ती हुई ममता को दबा कर रज्जो को रूपा की खिदमत में भेज दिया था।
चांदनी ने देखा बातें करती हुई मम्मी की आंखें मुँद गयी हैं ...,
' बस करिए मम्मी सोने की कोशिश करिए आगे की बातें कल होगीं '
अभी मम्मी की रिपोर्ट आने में दो दिन बाकी हैं।
तब तक ये समर्थ हो जाएंगी ऐसा सोचती हुई चांदनी माँ को थपकी देती हुई सुलाने का प्रयास करने लगी है ...

क्रमशः
सीमा वर्मा

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दादी की परी
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