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संस्कार - सन्दीप तोमर (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेरणादायक

संस्कार

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*."संस्कार”* –सन्दीप तोमर

घडी दो बजे का वक़्त बता रही थी, लकवे ने उसे इस कदर मजबूर कर दिया था कि बिना सहारे के उठकर वाशरूम जाना भी दूभर था। रमा भी तो जीवन की नैया बीच में छोडकर हमेशा के लिए चली गयी। रमा को याद कर सत्यनारायण परेशान हो उठे, कितना ख्याल रखती थी रमा उनके आज साथ होती तो हाजत के लिए इतना सोचना न पड़ता। सत्यनारायण यादों का गोता लगा पुनः यथार्थ में लौट आये और यथार्थ ये था कि वे पिछले चार साल से लकवे के चलते चलने-फिरने का काबिल नहीं रहे।

उन्होंने देखा, उनका एकमात्र सहारा उनका वॉकर उनकी पहुँच से इतना दूर है कि उस तक पहुँचना उनके लिए मुश्किल है, बेड से उतर उन्होंने हवाई चप्पल पहनने की कोशिश की, पाँच मिनट की जद्दोजहद में वे उस काम में विजयी हुए तो सरकते हुए वॉकर तक पहुँचे।

वाशरूम उनके कमरे से नजदीक ही है लेकिन कमरे से अटैच न होने के कारण वे वॉकर से चलकर दरवाजे तक आये, दरवाजा खोल ज्यों ही वाशरूम की ओर बढे, उनका पैर फिसला और वे गिर पड़े। गिरने की आवाज सुन बराबर के कमरे में सोया इकलौता बेटा उठकर बाहर आया । उसकी पत्नी भी हडबडाहट में उठ कर बाहर आ गयी।

“बाबूजी, आपको कितनी बार कहा है कि अकेले वाशरूम न जाया कीजिये, आप खुद को सम्भाल नहीं पाते, फिर क्यूँ....?”- सहारा देकर उठाते हुए बेटे ने पिता से शिकायत की।

“दिव्यम, तुम देर रात तक ऑफिस से लौटते हो, फिर खाना खाते हुए तुम्हे रोज ग्यारह बज जाते हैं, तुम्हें जगाकर मैं और ज्यादा तंग नहीं करना चाहता।“-नम आँखों से सत्यनारायण ने जवाब दिया।

“बाबूजी, याद है मुझे, जब बीटेक की तैयारी के समय आप मेरे साथ सिर्फ इसलिए जागते थे कि मुझे पढ़ते हुए बीच में भूख न लगे, अपनी नींद ख़राब कर आप मेरे लिए कॉफ़ी का मग तैयार कर किचेन से लाते थे। माँ जब दिन भर के कामों से थक जाती थी तब आप रात में मेरे लिए माँ बन जाते थे, आपको सुबह उठकर ड्यूटी भी जाना होता था। कुछ भी तो नहीं भूला मैं।“

सत्यनारायण कुछ देर मौन हो गए। सहारा देकर वाशरूम की ओर बढ़ते हुए बेटे ने कहा-“बाबूजी आपको कोई तकलीफ न हो इसलिए मैंने वर्किंग वीमेन की बजाय घरेलु-संस्कारी लड़की से शादी की, आपकी बहु आपको कभी किसी चीज की कमी नहीं होने देती फिर क्यूँ आप खुद को कष्ट देते हैं?”

“बस बेटा, और कितना कष्ट दूँ तुम दोनों को? मैं अभागा खुद तो कष्ट भोग रहा हूँ, तुम्हें और दिन-रात तंग करता रहूँ?“

बेटा पिता को हाजत करा उनके कमरे के दरवाजे की ओर बढ़ा, पीछे से बहु की आवाज आई-“पिताजी, आपके बेड के ठीक ऊपर ही घन्टी लगी है, आज सुबह ही मैंने उसकी बैटरी बदल दी थी, जब भी किसी चीज की जरुरत हो, बस एक बार बटन दबा दिया कीजिये। मैं या फिर ये आपके कमरे में आ जायेंगे।“

“हाँ बाबूजी, आप क्यों उस घण्टी का बटन भूल जाते हैं?”-बेटे ने सवाल किया।

सत्यनारायण के होंठ बुदबुदाये, मानो रमा को कह रहे हो, रमा तुम कितना डरती थी कि अगर मैं आपसे पहले चली गयी तो आप बाकि जीवन सब कुछ कैसे कर पाओगे? देखो तुम्हांरे बेटे-बहु कितना ख्याल रखते हैं मेरा।“

उनकी आँखों से दो आँसू उनके गालो पर ढलक गए, बेटा-बहु दोनों ही नहीं समझ पाए कि ये आँसू खुशी के थे या दुःख के।

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

लड़की हाउस वाइफ हो या काम काजी या फिर लड़का हो। परन्तु फर्ज दोनो का बनता है कि माँ बाप के हर अच्चजे बुरे में उनका साथ दें उनकी सेवा करें। बहुत ही बढ़िया कथा। हर दिल के करीब सी लगी।

दादी की परी
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