कवितालयबद्ध कविता
ख़ुशियाँ तो बहुत थी मगर ग़मों की भी कमी न थी
मैंने तुम्हें चाहा बहुत था
तुमने मुझे चाहा ये मुझे पता ही नहीं
मै चलती रही तुम्हारे साथ कदम दर कदम
तुमने कब छोड़ दिया मुझे पता ही नहीं
मैं जीती रही तुम्हारी यादों में वादों में
तुमने कब भुला दिया पता ही नहीं
मैं मुस्कुरा रही थी तुम्हें देखकर
कब आँखें नम हो गईं पता ही नहीं