Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
"मेरा जॉनी " 🍁🍁 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

"मेरा जॉनी " 🍁🍁

  • 174
  • 17 Min Read

# शीर्षक
" मेरा जॉनी " ...🍁🍁जो प्राप्त है वह पर्याप्त है

जीवन में संतुष्टि का भाव भी बहुत जरूरी है। ईश्वर ने जो हमें दिया है, उसके प्रति संतुष्ट होना भी बहुत आवश्यक है, नहीं तो हम चाहे कितने ही सफल हो जाएं ,संपन्न हो जाएं, हमें खुशी प्राप्त नहीं होगी।
संतुष्टि हमें जीवन को देखने का एक नजरिया प्रदान करती है। इस संबंध में एक छोटी सी कहानी बता रही हूं।

बीते कोरोना काल की बात है।

घर -घर घूम कर काम करनेवाली सुंदरी के माता-पिता दोनों की असमय मौत हो जाने से सुंदरी एक साथ ही अनाथ और असहाय हो गई है।
जब उसके आगे पीछे कोई भी नही रहा।
फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी है।
बल्कि अपनी बची-खुची ताकत जुटा कर वह अपने जीवन को आगे ले जाने के प्रयास कर रही है।
उसे घर की तमाम जरूरत पूरी करने के लिए बाहर निकलना पड़ा है।
वह आंठवी में पढ़ती थी।
घर में सिर्फ़ कामचलाऊ चीजें ही बची हैं।
वह देखने में अच्छी दिखती है एवं बहुत ही दयालु स्वभाव की है।
आस-पास में ही बने सरकारी क्वार्टर में बर्तन धोने का काम उसे मिल गया था।

इसके साथ ही दो घरों में उसने हेल्पर का काम करते हुए अपनी पढ़ाई भी जारी रखी है।
स्वभाव से मीठी होने के चलते वह जल्दी ही कोठी के मेमसाहबों की प्रिय बन गयी थी।
वे सब मिलकर उसका बहुत खयाल रखती हैं।
उनके प्यार से दिए गये जरूरत के सामान एवं खाने पीने की वस्तुएं रख कर वह बाकी का सारा सामान कॉलनी के अन्य बच्चों में बाँट दिया करती है।

उसकी गली में एक काले रंग का कुत्ता था जिसे वह अपने भोजन में से निकाल कर दो -दो रोटी खाने कझ जरूर देती है।

जिसे देतेहुए उसके चेहरे पर संतुष्टि का भाव शांति और खुशी वह साफ-साफ देखा जा सकता है।

मुहल्ले के सारे लोग उसे पागल समझ कर हँसते ,
'खुद खाने को है नहीं और कुत्ते को खिला रही '
जिसके जबाव में कुछ भी नहीं कहती बस हँस कर रह जाती है।

उसे कालू से बहुत प्यार है ।

कालू भी उसे बहुत मानता है। जब वह काम पर निकलती तो उसके पीछे-पीछे दुम हिलाता जाता और वहां गेट के बाहर तब तक बैठा रहता जब तक वह निकलती नहीं।

भयंकर शीत वाले जाड़े के दिन में जब कालू को ठंड लगती तो सुदंरी उसे अपने कमरे में अंदर कर के उसके उपर अपना शॉल डाल देती।

उस दिन कोठी में छोटे बाबा का जन्म दिन था ।
सुंदरी को काम निपटाते हुए रात के नौ बज गये। जब वह कोठी से निकल कर इधर उधर देखी तो कालू उसे कहीं नजर नहीं आया।
अंधेरी रात है। भयंकर अंधेरा था। गली बिल्कुल सुनसान सुंदरी एक पल को घबराई सोची ,
'वापस से कोठी में चली जाती हूँ '
लेकिन पढ़ाई भी तो करनी है।
अगले महीने फाइनल इग्जाम आ रहे हैं।
हिम्मत करके आगे बढ़ गई।

अचानक अगले मोड़ पर एक मोटरसाइकिल आ कर उसके पास रुक गई जिस पर तीन सवार उसे देख कर भद्दी-भद्दी बातें करते हुए अभद्र इशारे कर रहे हैं ।

सुंदरी का मन रोने को करनेलगा वह नितांत निपट अकेली ना भागने का रास्ता दिख रहा है और ना ही रुक कर उनकी बातें सुनने का ।

वह और भी तेज-तेज चलने लगी तो साथ में मोटर साइकल सवार भी भागने लगे। हड़बड़ी भरी घबराहट में सुंदरी गिर पड़ी हाथ में पकड़े सारे सामान रोड पर बिखर गये।

तभी न जाने कहाँ से कालू भौं-भौं करता हुआ दौड़ता हुआ आया और उन तीनों गुंडों पर झपट पड़ा।

उसे देख कर सुंदरी की भी हिम्मत बढ़ गयी वह दुर्गा की तरह बिजली बन कर उन तीनों पर झपट पड़ी ।

अचानक हुए इस हमले से वे तीनों गुंडे भी घबरा कर भागने को तत्पर हो गये।
कालू भाग-भाग कर उनको पीछे से खदेड़कर गली के मुहाने तक भगा आया और सुंदरी के पास आ कर उसे चाटने लगा ।
सुंदरी भी उसे गले से लगा कर जा़र-जा़र रोने लगी,
'आज तू नहीं होता तो मेरा क्या हो ता राजा भैया ? '
कहती हुई अपने कमरे में आ कर बिस्तर पर गिर गई ।
सुबह जब सबने यह कहानी सुनी तो सुंदरी के पशु प्रेम की शाबाशी देने लगे।

सीमा वर्मा

FB_IMG_1656408833242_1656428878.jpg
user-image
दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG