कहानीप्रेम कहानियाँ
#शीर्षक
"बोल्ड ऐन्ड ब्यूटीफुल " 🍁🍁 भाग ... ३
अब ये तो तीन तिगड़ी की कहानी हुई 'राजी, हिमांशु एवं अनुभा '
जिस पर आधारित इस त्रिकोण यों देखें।
' हिमांशु फिदा है राजी पर,अनुभा फिदा है हिमांशु पर, और राजी ?
राजी की नजर किसी और ही बंदे पर है जिसकी कानों-कान खबर सिवाय राजी को छोड़ कर और किसी पर नहीं है यहाँ तक कि उसकी दीदी को भी नहीं।
लेकिन इस किस्से को यहीं पर छोड़ पहले एक चौथे बंदे की बात जानते हैं।
वो चौथा बंदा है 'प्रियांश' ।
जिस दिन से कोचिंग क्लास से बाहर निकल कर से राजी ने हिमांशु को झटका दे दिया है।
उस दिन से ही हिमांशु ने फिर उसके करीब आने की कोशिश नहीं की है।
लेकिन उसकी मासूम मुहब्बत ने राजी को किसी भी तरह की मुसीबतों से दूर रखने की कोशिश में हर वक्त उस पर अपनी नजरों का पहरा बिठा दिया है।
उस दिन भी कुछ ऐसा ही घटा था जब राजी और अनुभा दोनों मिल कर अपनी कुछ जरूरी चीज की खरीद-फरोख्त करने कॉलोनी के स्टेशनरी शॉप में घुसी थीं।
तभी अचानक हिमांशु के दोस्त प्रियांश ने राजी से हिमांशु के साथ हुए झगड़े के कारण हुई दूरी का फाएदा उठाते हुए,
आ कर सीधे शॉप के अंदर जा घुसा और राजी की कमर को थपथपाते हुए पूछा,
' यहाँ से क्या खरीद रही हो ? '
' तुझसे मतलब ? ' अनुभा ने जबाव दिया
--प्रियांश ,
' ओ सेनिटरी नेपकिन '
कमर थपथपाने से पहले से ही राजी बौखलाई हुई थी उस पर से यह भद्दा मजाक ।
बस आव देखे ना ताव झटके से पलटी और पलट कर प्रियांश के हाथ कस कर मरोड़कर ,
'दिखाऊँ तुझे क्या खरीद रही थी ? अपने शर्ट की उपरी जेब में रखी कलम निकाल कर उसकी गाल में कस कर चुभोती हुई ,
'खबरदार जो आगे से ऐसी हरकत की तो फिर पूरी कॉलोनी में रोता हुआ नजर आएगा '
चल जा भाग जा यहाँ से और हाँ आगे से खबरदार।
उसे इस तरह गरजती देख शॉप के अंदर अनुभा और बाहर खड़े हिमांशु दोनों काँप रहे थे ।
फिर हिम्मत करके अनुभा ने ही उसे बहुत मुश्किल से शांत कराया।
यह तो हुई अपनी राजी के दिलेरी की कहानी।
इधर सब कहते हैं।
राजी का टाँका जरूर कहीं और ही किसी से भिड़ा है तभी तो वह किसी को भी भाव नहीं देती है।
क्या सच में ?
यह पता करते हैं ... ।
वापस घर लौट कर राजी घर आ गयी। शॉप में घटे वाकये से उसका दिमाग यों ही भन्ना रहा था।
कमरे में झांक कर देखा तो जया कमरे में नहीं थी।
वह बाहर बागीचे में लगे छोटे-छोटे पौधों को पानी देती हुई कुछ गुनगुना भी रही थी। उसके लंबे बाल पीठ पर झूल रहे और हवा में बिखर कर उसके गालों पर चिपक जा रहे हैं।
गहरे नीले रंग के जंफर सूट में वह बड़ी ही प्यारी दिख रही है।
बीच-बीच में झांक कर गेट के उस पार बने हुए मकान की खुली खिड़की पर भी उसकी नजर जा रही है।
जिस पर कोई खड़ा हुआ एक टक उसे ही प्यारी नजरों से पीए जा रहा है।
अचानक नजर मिलते ही जया शर्मा गयी और पानी पटाने वाले मग को वहीं पटक कर अंदर भाग गक किचन में चली आई।
उसे पसीने से भरी देख राजी ने टोका ,
'क्या हुआ दी ? '
'कुछ नहीं ,कुछ भी तो नहीं '
कहती हुई नजर झुकाए हुए गैस जला कर चाय के पानी रखने लगी क्योंकि शाम का समय हो चुका है पापा आने ही वाले होगें।
और ममा को भी तो इस वक्त चाय की तलब होती है।
दोनों बहन में यही अंतर है।
जया समझदार, जिम्मेदारियों को समझती हुई सावधानी से फूंक-फूंक कर कदम उठाने वाली है।
जबकि राजी स्वाभाव से अल्हड़ और तेज है उसे जल्दी कोई नही बहला सकता।
वह जितनी जल्दी अच्छी है उतनी ही जल्दी बुरी भी है।
जबकि जया सीधीसादी उनकी ममा भी जया को लेकर चिंतित रहती है अभी भी उसे बाहर से भागती हुई आती देख किचन में आ गयीं हैं और पूछ रही हैं,
'क्या हुआ जया ? कोई था क्या बाहर इस तरह हांफ क्यों रही है ?'
' कहाँ, कौन, कोई भी तो नहीं था ममा '
तब तक राजी बाहर जा कर देख आई सामने खिड़की पर हिलती-डुलती छाया देख कर मुस्कुरा दी और वापस लौट कर ममा से ,
'कोई नहीं ममा वहाँ तो कोई नहीं हाँ यहाँ मैं जरूर हूँ ,
'धत्त पगली '
कहती हुई जया ने राजी की ओर देख कर राहत की सांस ली है।
' पागल है तू जया और मुझे भी डरा कर रख दिया अच्छा चल अब जल्दी से मुझे चाय के साथ कुछ स्नैक्स भी दे जा आज हल्की भूख भी लग रही है '
कहती हुई ममा बाहर रखी कुर्सियों पर बैठ गयीं।
इधर कमरे में आ कर राजी ने खिड़की पर खड़ी छाया को देख कर दीदी के कान खिंचाई करने की सोचती हुई कॉपी पर पेन से कुछ स्केच बनाने लगी।
अचानक उसे कुछ याद आया और वह धीरे से उठ कर अपने स्कूल बैग में कुछ ढूंढ़ने लगी ... है।
क्रमशः