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"बोल्ड ऐन्ड ब्यूटीफुल " भाग ...एक 🍁🍁 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेम कहानियाँ

"बोल्ड ऐन्ड ब्यूटीफुल " भाग ...एक 🍁🍁

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  • 28 Min Read

#शीर्षक
" बोल्ड ऐन्ड ब्यूटीफुल " 🍁🍁 भाग ... १

साथियों नमस्कार 🙏☘️
इस लंबी कहानी के अधिकतर पात्र -पात्राएं हमारे आपके जैसे चलते-फिरते सहज एवं स्वाभाविक मानव-जनित भूल को करते हुए भावनाओं से भरपूर दिखाए गये है।
बहरहाल आइए जानते हैं।
दो बहनें ' जया' और राजी' की लंबी कहानी जिनकी उम्र में पाँच बर्ष का बड़ी बहन जहाँ शांत ,सौम्य और धैर्यवान है। वहीं छोटी बहन राजी शुरु से ही चंचल और अशांत स्वभाव की है।
इन्हीं के ईर्दगिर्द घूमते हुए कथानक बहुत से किरदारों के सौजन्य से आगे बढ़ता हुआ कहाँ तक जाएगा ईश्वर जानें🙏

#शीर्षक
"बोल्ड ऐन्ड ब्यूटीफुल"

यह कहानी महानगर के के मिडिल क्लास फैमिली फैमिली की है।
जिसमें जया और राजी के पिताजी किसी प्राइवेट कम्पनी में अच्छे पद पर स्थापित हैं।
उनकी बड़ी बेटी 'जया' दस साल की हो गई है। जब कि छोटी बेटी 'राजी' मात्र तीन साल की ही है।
तो चूंकि जया के घर में उसकी माँ को छोड़ कर और कोई नहीं था।
लिहाजा जया के नन्हें कंधों पर ही छोटी बहन राजी की देख-रेख से लेकर छोटे-बड़े सभी कामों की जिम्मेदारी आ पड़ी।
बात इसलिए छोटी नहीं है कि उस समय जया के खुद की उम्र भी बस इतनी ही थी जिसमें बच्चे स्वंय दूसरों पर निर्भर करते हैं।
इसके बावजूद
जया राजी को अपने संस्कारों में ढा़लने का प्रयास करती रहती है,
' देखो राजी मम्मी को माँ, पापा को पापाजी , बड़े भाई को भाई नहीं दादा कहना चाहिए '
अब ये और बात है कि राजी इस सबको एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देती है।
जया दीदी के अलावे बचपन से ही राजी की एक बहुत अच्छी 'अनुभा' सहेली भी है।
दोनों ने क्लास फर्स्ट से ही एक साथ पेंसिल के साथ जिंदगी के हर सुख-दुख शेयर किए हैं।
राजी और अनुभा जब बहुत छोटी थीं।
तभी से उन दोनों की ममा में भी दोनों के एक ही स्कूल में ऐडमिशन वाले दिन से शुरु हुई यह दोस्ती अभी तक निभ रही है।
इधर दोनों लड़कियों की चौदह साल पुरानी दोस्ती कितनी बार ऐसे-ऐसे दौर से गुजर चुकी है।
जबकि दोनों ने एक दूसरे की शक्लें तक नहीं देखने की कसमें खा कर भी अगले ही पल एक दूसरे के गले में बाँहे डाले घूमती नजर आईं हैं।
हर सही गलत काम को एक साथ करती हुई पीरियड बंक करने के साथ एक्स्ट्रा क्लासेज तक साथ-साथ करतीं हैं।
एक बार जब राजी क्लास सिक्स में थी अनुभा स्कूल में राजी की मुड़ी-तुड़ी चाल देखकर कर चिल्लाई थी,
' तुझे क्या हुआ है ? राजी तू ऐसे क्यों चल रही ह
राजी ने अनुभा की ओर देखा और आगे बढ़ गई कुछ भी बोली नहीं।
अनुभा उसके पीछे-पीछे चल दी है ,
' बोल ना राजी , आखिर हुआ क्या है तुझे ?
राजी सिर्फ नीचे की ओर देखती हुई बोली ,
'रास्ता मत रोको अनुभा ,अब मैं तुम्हारे जैसी नहीं रही '
' चलो हटो ,अब बता भी दो ऐसी दुखियारे टाइप क्यों बोल रही हो मेरा तो दिल बैठा जा रहा है '
'अनु, अनु अब मैं पहले जैसी नहीं रही मुझे कुछ हो गया , और आज ही हुआ है मुझे जया दीदी ने बताया है '
अनुभा एकदम से घबरा गयी,
' क्या बताया है दीदी ने क्या हुआ है तुझे ? '
दरअसल आज सुबह की ही बात है जब जया ने घर के कपड़ों की धुलाई के लिए कपड़े छांटते वक्त राजी से पूछा था ?
' राजी यह तेरे ही कपड़े हैं ना ?
'क्यों क्या हुआ ?'
जया ने कपड़े एक ओर रखते हुए राजी को प्यार से अपनी बगल में बैठा लिया,
' देख राजी तेरी 'डेट' आ गयी है और अब तू बड़ी हो गई है ' राजी एकदम से घबरा गयी,
'डेट ,किस चीज की डेट दीदी '
'देख पहले तो तू जरा सा भी घबरा मत।
ये सब हम लड़कियों की लाइफ का नॉर्मल सा चेंज है
जिसे इस एज में होना ही होता है '
अब से मंथ्स के इन खास दिनों में तू ऐसे ही नहीं घूम पाएगी तुझे नैपकिन यूज करना पड़ेगा :'
राजी एकदम से शॉक्ड हो गई,
' सब बदल गया, वह बड़ी हो गयी दीदी ये क्या बोल रही है ?
कैसा भद्दा मजाक कर रही है ? '
फिर जया राजी को परेशान देख कर मन ही मन सोची
ये सब बातें तो मुझको इसे पहले ही बता देनी चाहिए थी,
' अच्छा चलो जाने दो पर अगली बार से तुम्हें इस तारीख का ध्यान देना होगा ,
क्योंकि अबहर महीने में ... तुझे इसका सामना करना पड़ेगा '
--राजी आंखें चौड़ी करती बोल उठी
' हर महीने ये परेशानी ? मजाक मत करो दी ये किस बात की सजा मिली है मुझे मैंने तो कोई गलती भी नहीं की है '
हँस पड़ी जया...
' बेटा यह कोई सजा नहीं है और कितना जरूरी है यह तुम्हें आगे जा कर पता चलेगा '
बस तभी से राजी परेशान हुई बैठी है।
उसके नन्हे से दिल पर वज्रघात जैसा कुछ गिरा था।
और अब अनुभा का यह सवाल कि आखिर तुझे हुआ क्या है ?
-- राजी रुआंसी हो कर अनुभा से बोल रही है,
'जानती है अब मैं पहले जैसी नहीं रही मेरी डेट आ गई डेट... कहती हुई उसकी आंखें डबडबा गयी '
' हैं, हा हा हा... अरे तो इसमें कौन सा जलजला आ गया डेट ही तो आई है जैसी सबकी आती है तेरी ,मेरी मम्मी की दीदी '
' क्या कहा ? सबकी आती है मतलब तेरी भी आ गई है ?
हाँ मेरी भी आती है। सबकी मतलब लड़कों को छोड़ कर सबकी आती है पगली , और तू इसे इतना बड़ा प्रौब्लम बता रही है '
फिर तो बहुत मुश्किल से अनुभा राजी को यकीन दिला पाई कि ,
' राजी ,कमॉन इट्स अ नैचुरल प्रोसेस ये कोई बड़ी समस्या नहीं है इसे हर लड़कियों को सामना करना पड़ता है '
खैर जैसे-तैसे स्कूल का समय खत्म हुआ।
वाकई कुछ चीजें इस दुनिया में कभी नहीं बदलती और न बदलने वाली हैं। वह शहर-गाँव, नगर-महानगर , देश- काल से परे होती हैं।
आइए अब आपकी पहचान कराती हूँ 'राजी ' से।
हमारी पंद्रह बर्षीय राजी का बचपन अब उसे टाटा बाई-बाई करने को आतुर है। वह क्लास ट्वेल्थ की स्टूडेंट जिसकी उंची उड़ान, किस आसमान को छूना चाहती है।
अगर यह जानना है तो सबसे पहले उसकी नजरों से दुनिया देखनी होगी।
उसकी हर बात में एक अजीब सी खा़मख़्याली है।
उसके कोई भी विचार,
अगर-मगर से शुरु हो इनभर्टेड कौमा लगाती हुई क्वेश्चन मार्क पर ही खत्म होती है।
सांवला पन मिश्रित सुनहरे चंपई रंग वाली राजी की गोल-गोल भूरी आंखें और उसमें लगा काएदे से काजल ऐसा लगता मानों बिना बात के ही अगर आप गलतफहमी वश भी कहीं उससे उलझ बैठे तो बस आपकी खैर नहीं है।
उसकी इसी खासियत को देख जया कहती हैं,
' तेरी नाक पर तो सारे जमाने भर का गुस्सा बैठा रहता है '
बहरहाल...
स्कूल में छुट्टी हो चुकी है राजी भी सब लड़कियों के साथ बस में बैठ अपने घर के पास वाले स्टॉपेज पर उतर घर की ओर चल दी है।
जहाँ पहुँच कर सीधी अपने कमरे में जा कर ए.सी चला कर बैठ गयी है और वहीं से आवाज लगाती हुई कह रही है,
' ममा आप किचन में हो ?
' बहुत जो़र से भूख लगी है, खाना दे दें जल्दी से फिर मुझे ट्यूशन जाना है '

शेष आगे ...
सीमा वर्मा /नोएडा

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दादी की परी
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