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" मन का मिलन " भाग ...३ 🍁🍁 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

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" मन का मिलन " भाग ...३ 🍁🍁

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लंबी कहानी भाग ... ३ 🍁🍁
#शीर्षक
" मिलन की बेला "

" ममा आप ठीक तो हो " बिटिया की चिंतातुर आवाज ...
वह फोन लिए हुई बालकॉनी में आ गई और स्नेह भरे स्वर में पूछ बैठी,
" हाँ बोल बेटा "
" कुछ नहीं बस आपकी बहुत याद आ रही थी या फिर पा और आपकी , आप दोनों की ही " ,
" पा कब तक लौटेगें ... ? "
शिवानी की इच्छा नीचे तक झुक आए बादलों को छूने की हो आई ,
" क्यों ऐसे क्यों पूछ रही हो ' चंदा '
' मैं और तेरे पा दोनों ही बिल्कुल ठीक हैं।
तेरे पा पूरे पाँच दिनों के टूर पर शिमला गये हुए हैं बेटे "
" ओ नो... फिर आप अकेली हो घर पर आप भी चली जातीं उनके साथ ही... "

फिक... से हँस दी शिवानी।

" अच्छा ममा ... डोंट वरी आप अकेले ही काफी हो खूब घूमें फिरे ऐन्ज्वाए करें
बस ऐसे ही अचानक आपसे बातें करने का मन हो रहा था तो फोन लगा लिया "

" अच्छा किया बच्चे "

फिर दो चार इधर-उधर की बातें कर के फोन रख दिया शिवानी ने और अन्दर आ आरामकुर्सी पर पीछे सिर टिका कर बैठ गयी।

शिवानी परम्परा वादी परिवार से थी।

उसे याद है 'आई एस सी 'की परीक्षा उसने कितने अच्छे नम्बर ले कर पास किया था दो विषय में डिंसट्रिंक्शन भी मिले थे पर परिवार में इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा था।

सबसे भली वह लेकिन किसी ने उसकी पीठ नहीं थपथपाई थी।

हाँ अलबत्ता उसके आगे बाहर जा कर पढ़ने की इच्छा पर कितना बबाल मच गया था पूरे परिवार में।

घर में उसकी शादी के चर्चे होने लगे थे ।
तब वह कितना रोई-धोई थी। उसका मन अभी और आगे पढ़ने का था ।
वह 'बी एस सी ' करना चाहती थी।

लेकिन पापाजी का कहना था... ,
" आगे पढ़कर क्या होगा ?
अगर पढ़ना ही है तो यहीं प्राइवेट से पढ़ लो आर्टस लो या सांइस क्या फर्क पड़ता है ? "
लेकिन उसने भी जिद ठान ली थी ,
"अगर ऐडमीशन नहीं कराया तो फिर किसी कीबात नहीं सुनूगीं " आश्चर्य हुआ था उसे कि बड़े भैयाजी ने इजाजत दे दी थी।

इस धमकी के साथ कि सीधे कॉलेज से घर और घर से कॉलेज बीच-बीच में भाई की धमकी भी मिलती रहती ,
"कुछ गड़वड़ हुई तो पढ़ाई बंद " कहते हुए कान उमेठ दिए थे।

चलो आगे पढ़ने की इजाजत तो मिली यही सोच कर उसने हामी भर दी थी।

तब उसकी कितनी मुश्किलों भरी जिंदगी थी।
आज उसकी बेटी ने खुले आम प्रेम विवाह किया है और वह भी परिवार वालों की मर्जी से खुद शिवानी ने आगे बढ़ कर सारे रस्मोरिवाज निभाई हैं।

समय कहाँ से कहाँ आ गया है ?
शिवानी का गला इस बरसात में भी सूखने लगा है ।
वह कुर्सी पर से उठ कर किचन में गयी पानी का ग्लास उठा कर गटगट एक सांस में पी गयी।

फिर गैस के चूल्हे जला कर उस पर चाय का पानी चढ़ा दिया उसे भूख भी लग आई थी।
फ्रिज का दरवाजा खोल बहुत देर तक योंही खड़ी रही लेकिन जाने क्यों आज कुछ में दिल नहीं लग रहा है।

तभी टेबल पर रखे आलू के पराठे पर नजर गयी।
कप में चाय ढ़ाल कर उसने उन पराठों को गोल कर के मोड़ लिया जैसे बचपन में किया करती थी और लेकर वापस कमरे में आ गयी।

" कमरे में बैठ कर चाय की चुस्कियां लेती शिवानी की उंगलियां अनायास ही मैसेंजर खोल बैठी,
" बेहद अच्छा लगा तुम्हे देख कर शिवानी क्या हम मिल सकते हैं ? "
उसकी इस फरमाइश से वह चिंहुक गयी।
" पहली ही बार में मिलने की इच्छा जाहिर करना यह कुछ ज्यादा नहीं हो गया सुश "
वह हँस पड़ी ,
" पागल "
और हँसने वाली इमोजी भेज दी।
"कहाँ हो आजकल ? "
" पुणे में " शिवानी ने लिख दिया।

काफी बेचैन दिख रही शिवानी ने 'व्हाट्सएप कॉल' पर उंगली रखनी चाही पर फिर कुछ सोच पीछे हटा लिया।

वो मोबाइल बंद कर बिस्तर पर लेट गयी। उसे अच्छा लग रहा था इस समय सुशांत के बारे में सोचना एक राग जैसा लग रहा था।

तब कॉलेज में इग्जाम खत्म हो गये थे। उसे सारी रात नींद नहीं आई थी उसका मन था सुशांत से कितनी ही बातें करने का लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया था।

वह जान रही थी इस बार घर पर फिर से वही शादी की चर्चा और इस बार तो उसके पास इसे टालने का कोई बहाना भी नहीं होगा ।

सच में घर में सिर्फ़ चर्चा ही नहीं इस दफा़ पूरी तैयारी ही हो गई थी।

शिवानी जान गयी अब बात बढाने से भी कुछ फाएदा नहीं है।

पिछली बार ही बाहर जा कर पढ़ने की बात पर पापा कितने नाराज थे।
अब तो शायद गला ही दबा देगें। वह गलत नहीं सोच रही थी।

माँ हर बार खड़ी होती रही हैं उसकी खातिर पापा के विरुद्ध... पर उस बार उन्होंने भी अपने हाथ उठा लिए थे।

विरोध करने की हिम्मत नहीं थी तो खुद को भाग्य के भरोसे छोड़ नहीं दिया था दिया शिवानी ने

बहुत मिन्नतें की थी माँ की ,
" एक बार तो बात कर के देखिए माँ शायद ... मैं ' एम एस सी ' कर आगे अपने पैरों पर खड़े होना चाहती हूँ "

" तू चाहती है कि घर की सुख शांति सब तेरी जिद के आगे भंग हो जाए ? "
उल्टा माँ ने ही तीखे सवाल कर दिए थे।

वो अपनी जगह सही ही थींं कुछ भी गलत नहीं सोच रही थीं।

आखिर उन जैसी स्त्री की औकात ही क्या थी पापाजी के सायने।
मिन्नतों के जबाब में वही रटा-रटाया वाक्य...
" कैसी बातें कर रही हैं आप ? शिवानी की माँ ,
" अब और मनमानी नहीं चलेगी शादी के बाद ससुराल वालों की मर्जी से चाहे जो इच्छा हो करे । "

इसके दो महीने बाद ही सुहाग की खनकती चूड़ियाँ पहन कर शिवानी सुधीर के साथ पुणे चली आई थी।

क्रमशः
सीमा वर्मा / नोएडा

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दादी की परी
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