Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
होली का त्योहार - Anju Gahlot (Sahitya Arpan)

कवितागीत

होली का त्योहार

  • 146
  • 5 Min Read

स्वरचित कविता
शीर्षक-"होली :अबकी तबकी"

होली आई रे हमजोली
करो शोर हुड़दंग ठिठोली
पिचकारी ले लो रे कान्हा
बच ना पाए कोई संगी-सहेली

रंग गुलाल उड़ाओ जमकर
पी लो ठंडाई भांग की गोली
प्रेम-रंग में सराबोर हो
कहती है मस्तानी टोली

खुलकर मधुबन में जब कान्हा
राधा संग रास रचाते थे
फागुन पर पिचकारी लेकर
ग्वालों संग घात लगाते थे

सुभग सखा सब प्रेम पगे थे
ब्रज की हर गोपी थी भोली
बंसी की मीठी धुन सुनकर
नेहा से भरते थे झोली

ऐसी थी तब की होली...

कलयुग के काले मन हैं अब
श्वेत झूठ से खेलें होली
कृत्रिमता का रंग घोलकर
द्वेष,बैर की मलते रोली


मुरली की धुन कौन सुने अब
सीटी बजती है गली गली
अर्धनग्न सी लैला भटकें
छैले घूमें छली बली
ऐसी है अबकी होली...

कोयल कहती है पुकार के-
बाग-बगीचे,अली-कली
आओ फूलों से खेलो सब
बोलो मिश्री सी बोली
आओ सब खेलें होली

____
स्वरचित-डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली

20220317_112251_1647517775.jpg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
मुझ से मुझ तक का फासला ना मुझसे तय हुआ
20220906_194217_1731986379.jpg
तन्हाई
logo.jpeg