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मेरे बाबू जी - Kamlesh Vajpeyi (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

मेरे बाबू जी

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कहानी
        ००
*"क्या आपको मेरे बाबू जी का पता मालूम है?"*

     चुन्नी भाभी के गुजरने के बाद आज  पहली बार  मैं मोती राम के घर गया तो मोती राम का कमरा देख कर एक झटका लगा।ऐसा लग रहा था पलंग की चादर कई महीनों से बदली नहीं गई है।कमरे के और समान का भी यही हाल था,पर बाकी पूरा घर पहले की तरह ही साफ सुथरा था।
मोती राम ने मिठाई के एक छोटे डिब्बे से प्रसाद के दो पेड़े निकाल कर अखबार पर रख दिए और पास रखी सुराही से पानी का गिलास भर कर खिड़की के फर्श पर रख दिया।
   वो मोती राम जिसके घर से कभी कोई नाश्ता पानी करे  बिना जाता ही नहीं था आज केवल अपने मित्र को दो पेड़े खिलाते हुए शर्मा रहा था।
  तमाम बातों के बीच जब घर के हालात की बात चली तो मोती राम उदास हो गए, उनकी आंखों में नमी छलक आई,मैंने फिर इस विषय में और बात करना उचित नहीं समझा।
एक दिन मैं सुबह सब्जी लेने कुछ जल्दी ही निकल गया। करीब सात बजे होंगे ,देखा मोती राम चाय की दुकान पर एक हाथ में टोस्ट और दूसरे में चाय का गिलास लिए लोई ओढ़े तिपाई पर बैठे हैं।मुझे देख कर वह बोले "आओ चाय पीते जाओ।"मैने कहा बस अभी चाय पीकर ही आ रहा हूं। कुछ बात चीत के बाद मैं मंडी की तरफ चल दिया।
एक दिन मोती राम को चुन्नू के ढाबे पर खाना खाते देखा ।मोती राम मुझे देख कर भी अनजान बने  रहे। वह नहीं चाहते थे की मैं उन्हें ढाबे में खाना खाते देखूं।मैं भी बिना कुछ बोले आगे बढ़ गया।
आज मुझे अच्छी तरह समझ में आ गया था की मोती राम की उनके घर में बेकद्री शुरू हो गई है।उनको  अपने घर में चाय और खाना तक नसीब नहीं हो रहा है।
फिर एक दिन पता लगा की मोती राम घर छोड़ कर कहीं चले गए हैं।इस घटना से मुझे बहुत दुख और गुस्सा दोनों आया।मेरा मन किया की मोतीराम के लड़के बहु से अभी जाकर बात करूं , कि क्या इसीलिए आदमीभगवान से औलाद मांगता है?
  पर सोचने लगा कोई फायदा नहीं, ये लोग अगर इतने ही भले होते तो मोती राम घर छोड़ कर जाता ही क्यों।
  मैं तो चुप रह गया पर पूरे मोहल्ले में प्रकाश औरउसकी बहू को लोग भला बुरा कह रहे थे।
   इस घटना के करीब तीन महीने बाद प्रकाश बहुत घबराया हुआ मेरे पास आया और बोला "चाचा क्या आपको मेरे बाबू जी का पता मालूम है?  बाबूजी बिना बताए पता नहीं कहां चले गए?"मैने पूछा प्रकाश क्या जरूरत पड़ गई तुम्हे बाबू जी की,आखिर कुछ तो तुम लोगों ने ऐसा जरूर किया होगा जो बुढ़ापे में आदमी को अपना घर छोड़ कर जाना पड़ा?
प्रकाश बहुत घबराया हुआ और परेशान लग रहा था।
मैने उससे पूछा अच्छा बताओ क्या बात है?मेरी बात के उत्तर में उसने मुझे एक सरकारी कागज पकड़ा दिया।
उसको पढ़ कर तो मय भी हैरान रह गया।
  वो कोर्ट द्वारा मकान खाली करने का नोटिस था।यह नोटिस उस आदमी ने भेजा था जिसके हाथ मोती  राम नेअपना मकान बेचा था।
   प्रकाश की आंखों से आंसू थम नहीं रहे थे।उसने रोते हुए कहा "चाचा हम लोगों से बहुत बड़ी गलती हो गई। ,कुछ करिए।"
  प्रकाश की बात सुन कर मैं सोच रहा था अगर मोती राम के पास अपना मकान न होता और उसने बेचा न होता तो क्या प्रकाश को कभी अपनी गलती का अहसास होता।
कितने  ऐसे मां बाप  है जिनके पास अपनी कोई संपत्ति नही है,वोअपने बेटे बहू द्वारा मोती राम की तरह प्रताड़ित किए जा रहे हैं। उनके बेटे बहू को क्या कभी अपनी गलती का अहसास हो भी पाएगा की नहीं।
  लेखक : *यायावर गोपाल खन्ना*

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दादी की परी
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