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कौसल्या - Kamlesh Vajpeyi (Sahitya Arpan)

कहानीसंस्मरण

कौसल्या

  • 70
  • 21 Min Read

' संस्मरण ''


मेरे कैरियर के बहुत से वर्ष बैंकिंग में ही बीते, अतः अधिकांश संस्मरण भी तभी के हैं. एक संस्मरण प्रस्तुत है..!

बात तब की है जब मैं. कानपुर देहात के मुख्यालय '' माती '' में कार्यरत था. सी डी ओ आफिस के विशाल परिसर '' विकास भवन '' में हमारी  शाखा थी. सभी शासकीय योजनाओं के खाते हमारी शाखा में थे. उनमें शासन द्वारा भेजा जाने वाली धनराशि आती थी. बाद में विभागों द्वारा लिस्ट भेजी जाती थी. जो हम अपने स्टाफ़ के द्वारा सभी लाभार्थियों के खातों में जमा करवाते थे.परिसर में ही सारे विभाग थे. सी डी ओ आफ़िस के स्टाफ़ के वेतन के खाते भी हमारी शाखा में थे.
सभी परिचित हो गए थे.

समाज कल्याण विभाग द्वारा विधवा - पेंशन व्रद्धावस्था, पेंशन, छात्रों की छात्रवृत्ति, आंगनबाड़ी की महिलाओं का धन आदि आता था. और उनके व्यक्तिगत खातों में स्टाफ द्वारा, लिस्ट के आधार पर जमा किया जाता था और लाभार्थियों की प्राय:भीड़ भी लग जाती थी. ब्रांच का परिसर छोटा था. स्टाफ़ में. तीन लड़कियां थीं, जिनमें हमारी ज्वाइंट मैनेजर भी शामिल थी. अधिक तर वही लोग यह सब काम करती थीं. हम सब लोग लंच में एक साथ, मेरे केबिन में ही, खाना खाते थे. बाद में तीनों लड़कियां परिसर में कुछ समय घूमती थीं. शाखा का काम सुचारू रूप से चलता था. आने जाने के लिए स्टाफ के लिए, चार्टर - बसें थी, जिसमें सभी आफिस वाले कानपुर से आते-जाते थे. हम लोग भी उन्हीं बसों का प्रयोग करते थे. मासिक पास बन जाते थे.

सेविंग की सीट पर सबसे कम उम्र की लड़की, सुचिता बैठती थी, पासबुक भी वही प्रिंट करती थी. उसे काम सिखाने का कार्य एक अन्य स्टाफ, जो उससे कुछ बड़ी किन्तु 1 वर्ष के लगभग सर्विस वाली लड़की (स्वाति), किया करती थी.जिसे, अधिकांश काम आते थे और वह समय-समय पर सुचिता को सिखाती भी, रहती थी.

एक बार की बात है, एक ग्रामीण, व्रद्ध महिला सेविंग के काउन्टर पर अपनी  पेंशन के बारे में पता करने आयी..

सुचिता ने उसकी पासबुक लेकर प्रिंटर में लगायी और देख कर बताया कि पेंशन अभी नहीं आयी.
प्रिंटर में पासबुक लगाने से वह  महिला आगबबूला हो गयी.. पता नहीं, शायद उसे लगा कि पासबुक, प्रिंटर में डालने से.. पेंशन आने की संभावनाएं ही खत्म हो गयी हैं. वह उसको बुरी तरह से गालियां देने लगी. सुचिता, बिल्कुल चुपचाप, बिना हिलेडुले, अपनी सीट पर बैठी हुई थी.

मुझे बहुत गुस्सा आया और आक्रोश भी हुआ. वह एक बहुत व्रद्ध और अशिक्षित ग्रामीण महिला थी, शायद उसे पता भी नहीं होगा कि वह क्या कर रही है. मैं कभी ज़ोर से नहीं बोलता, उसको बहुत कुछ कहा, लेकिन उस पर कोई असर नहीं था. और सभी लोग बिल्कुल चुप थे.

तब तक उस महिला को, जॉइंट- मैनेजर विभा ने अपने पास बुलाया.. '' अरे दादी. क्या हुआ.. आप इधर आओ..हम देखते हैं.. वह महिला उधर गयी और विभा ने, कम्प्यूटर पर देख कर, उसे पूरी बात,बहुत विनम्रता से समझाने की कोशिश की.. कि पेंशन का पैसा अभी नहीं आया है.. जैसे ही आएगा, मिल जाएगी, अब उस व्रद्धा ने गालियों की वर्षा..पूर्ववत, उस पर शुरू कर दी..!
कुछ देर
बाद, अधीनस्थ कर्मचारी, यूनुस उसको किसी तरह, ब्रांच से बाहर ले गया.. महिला के तेवर अभी भी गुस्से के थे.

अब लड़कियों ने. संयुक्त- प्रबंधक, विभा की, खिंचाई शुरू कर दी. . , बड़ी आयीं थी, .. दा.. दी.. इऽऽ.. इधर आओ..!!   मज़ा आया.. .., प्रसाद मिला!! 😊



ब्रांच में माहौल कुछ हल्का हो गया.

बाद में मैंने सुचिता से पूछा.. यह बताओ.. तुम, बिना कुछ बोले, चुपचाप. बैठी कैसे रही..!

उसने भोलेपन से जवाब दिया, '' स्वाति दी ने हमसे कहा था, कि कभी भी, कौसल्या आएगी.. और ख़ूब चिल्लाएगी..ब्रांच में कोई कुछ नहीं बोलेगा.. लेकिन तुम, बिल्कुल चुपचाप बैठी रहना..बिल्कुल बोलना नहीं."  वह स्त्री पहले भी आती रही होगी, तब स्वाती. काउन्टर पर बैठती रही होगी. वह हमलोगों के पहले से शाखा में काम कर रही थी.

मैंने उस महिला का खाता नं, आदि नोट कर लिया. जिससे मुझे, पेंशन आने पर तुरंत पता लग जाये. और आगे से, कोई अप्रिय स्थिति न हो.

कुछ दिनों बाद, समाज - कल्याण विभाग के एक स्टाफ़, उस महिला, कौसल्या को लेकर सीधे मेरे पास आए,'  'कौसल्या के ' रौद्र' रुप से. शायद वे सब, पूरा आफ़िस भी, भलीभांति, परिचित रहे होंगे. अतः वे नहीं चाहते होंगे कि कोई अप्रिय घटना हो.
उसकी पेंशन की लिस्ट भी वे साथ, लाए थे. जिसमें उसका नाम था. मैंने तुरंत, ख़ुद. एक विड्राल फार्म भरा, पेंशन खाते में जमा की, कौसल्या के अंगूठे लगवाये, अपने कम्प्यूटर पर पोस्ट किया और कैशियर से पैसे स्वयं लेकर, महिला को, बिना कुछ कहे, उसके हाथ में रख दिए. वे सज्जन उसे लेकर तुरंत शाखा के बाहर चले गए. पांच, सात मिनट में सारे काम हो गये. उस दिन संयोग से लड़कियाँ थी नहीं. बाद में मैंने उन्हें बताया.

बाद में अक्सर कौसल्या की, चर्चा होती रहती.
अब वे सब दूसरी शाखाओं में, अधिकारी हैं.. सम्पर्क में रहती हैं. और कभी-कभी '' कौसल्या '' को याद कर लिया जाता है..!

कमलेश वाजपेयी
नोएडा

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दादी की परी
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