कवितालयबद्ध कविता
औरत हूँ, मैं नारी हूँ...............
आगाज़ हूँ अंजाम भी
चट्टान सी मैं भारी भी,
क़ायनात पूरी समा जाये
है मुझमें इतनी ख़ुमारी भी।
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औरत हूँ, मैं नारी हूँ............
समर्पण का साग़र हूँ
कोमल इतनी दुलारी भी,
महकता ये जहान मुझसे
हां मैं हूँ फ़ुलवारी भी।
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औरत हूँ, मैं नारी हूँ...........
जो ताकते,मरोड़ते हैं
हूँ शक्ति मैं,धधकती चिंगारी भी,
नाप दूँ मैं गहराइयाँ
हूँ क़द्रदान महतारी भी।
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औरत हूँ, मैं नारी हूँ...........
सहस्र दिलों की आस मैं अहसास हूँ
चाहतों का गुम्बज, खुशियों की पिटारी भी,
परिंदों सी है उड़ान मुझमें
तीन लोक फैलाती उजियारी भी।
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औरत हूँ, मैं नारी हूँ................
काटती मैं बेड़ियाँ
मिटाती मिथ्यायोँ की बीमारी भी,
भोर हूँ, अवतार मैं
हूँ शक्तिस्वरूपा प्यारी भी।
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औरत हूँ मैं,नारी हूँ...........
ख़ुद टूट के मैं जोड़ती
कुलों की टूटी अटारी भी,
गुमाँ के तरु झुका दिए
हूँ तलवार मैं दो धारी भी।।
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औरत हूँ मैं, नारी हूँ.........
©कुलदीप दहिया "मरजाणा दीप"