कविताअन्य
बचपन
हम जी रहे थे अपनी मदमस्त मस्ती मे
न कोई फिकर थी न कोई फितूर था
न कोई मकसद था न कोई स्वपन था
हर तरफ लापरवाही सा आलम था
न कोई बंधन था न समय की कोई बेड़ी थी
बस थी तो एक मदमस्त बिंदास हंसी थी
खुला आसमान था पंखो मे उड़ान थी
आगोश मे समेट लू बस यही एक आरमान था
मासूम से ख़यालो का दर्पण था
वही तो मेरा बचपन था, वही तो मेरा बचपन था,
आशा