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बचपन - Asha Khanna (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

बचपन

  • 297
  • 2 Min Read

बचपन

हम जी रहे थे अपनी मदमस्त मस्ती मे
न कोई फिकर थी न कोई फितूर था
न कोई मकसद था न कोई स्वपन था
हर तरफ लापरवाही सा आलम था
न कोई बंधन था न समय की कोई बेड़ी थी
बस थी तो एक मदमस्त बिंदास हंसी थी
खुला आसमान था पंखो मे उड़ान थी
आगोश मे समेट लू बस यही एक आरमान था
मासूम से ख़यालो का दर्पण था
वही तो मेरा बचपन था, वही तो मेरा बचपन था,

आशा

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बचपन का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है

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