कविताअतुकांत कविता
मेरी संस्मरणात्मक अतुकांत कविता...।
#शीर्षक
" पत्ता " 🍁🍁
हमनें सदा कटे हुए वृक्ष के दुख
देखे हैं।
लेकिन वृक्ष से उगी टहनी से झड़े पत्ते
का दुख जाना है कभी ?
नहीं ना !
एक दिन वह तेज हवा में टहनी से
टूटा पड़ा,औंधे मुँह
था गिरा धरती की पथरीली गोद में !
मैं ने उसे थामा, सहलाया
फिर निहारा उसकी उभरी
नसों वाले पके चेहरे को
वक्त की धार में
पूछा लिया,
कहाँ जा रहा है ?
उसने कहा
लगा टहनी से जब तक
उड़ रहा था सूखी हवा के संग
गड़ती, चुभती धूप में।
ज्यों पिता की गोद में।
कोंपल से बना हरा पत्ता
फिर पिअराने की कथा
है बस इतनी सी
तुम्हारा शुक्रिया!
अब बहने
जा रहा हूँ नदी की धार में।
तपता ही रहा हूँ मैं
देनें को छाँव,
सदा काँपता
टहनी से लगा हुआ...
सीमा वर्मा /नोएडा