कहानीसामाजिकलघुकथा
#शीर्षक
" आस्था " 🍁🍁
" जिद नहीं करो जो़हरा हमारे यहाँ औरतों को कब्रिस्तान जाने की सख्त मनाही है।
जो औरतें ऐसी गलती करती है उसपर खु़दा और उसके फरिश्ते लानतें बरसाते हैं "
बड़ी आपा के उसे समझाने की पुरजो़र कोशिशों उस पर कुछ असर होता नहीं दिख रहा है।
उसके लिए हदीस, कुफ्र ,मुल्ला खुद़ा ये सारी बातें बेमानी हो चुकी है।
छपपटाती हुई जो़हरा ने आगे बढ़ती हुई मर्दों की टोली को पीछे छोड़ ' दिलखुश' की अर्थी को कांधा देना चाहा लेकिन अब्बू ने आगे बढ़ कर उसे अपने शिकंजे में ले लिया।
सभी हैरान होकर देख रहे हैं।
वो जितनी ज्यादा हरकतें करती उसके अब्बू का शिकंजा और भी कसता जाता है। पर ना जो़हरा का जोश ठंडा होता दिख रहा ना उनकी पकड़ ढ़ीली हो रही है।
माहौल और ज्यादा गर्माता इसके पहले ही अब्बू ने उसे घसीटते हुए घर के अंदर ले जा कर के एक कमरे में बंद कर दिया।
जो़हरा खूब रोई... खूब रोई...इतना तो वह तब नहीं रोई थी जब सरेआम चौराहे पर उसके मात्र आठ महीने पुराने शौहर का कत्ल कर दिया गया था।
वे दस बर्षों से प्रेम में थे।
जो़हरा ने कई दिनों तक अपने को कमरे में बंद रखा एक बार तो उसने फांसी लगा कर जान देने की भी कोशिश की लेकिन कोख में पल रहे दिलखुश की अजन्मी सन्तान ने उसके फंदे की ओर उठे हाथ को थाम लिया।
वह दिलखुश की तेरहंवी पर भी बाहर नहीं निकली सारे मुहल्ले में लोग कहते हैं उसे शौहर की हत्या का गहरा सदमा लगा है।
जब भी कोई उससे बात करने जाता वह उससे दिलखुश के पास शम्शान घाट जाने की तमन्ना जाहिर करती है।
" तुम समझती क्यों नहीं हो जो़हरा औरतों का किसी भी सूरत में कब्रिस्तान जाना मना है " बड़ी आपा ने उसे आगोश में लेते हुए कहा ...,
" मैं समझ सकती हूँ तुम्हारे जज्बात यह तुम्हारे लिए किसी कयामत से कम नहीं है लेकिन तुम्हें खुद को संभालना होगा तुम कुरान पढ़ो हमारा मज़हब तुम्हें किसी काफि़र की बीबी के रूप में कभी नहीं कुबूल करेगा "
खु़दा उसे जरूर जन्नत अता करेगा "
लेकिन जो़हरा को फिर से सारी बातें बेमानी लगती हैं ,
" कोई किताब आसमान से तो नहीं उतरी होगी किसी ने अपनी सहूलियत के हिसाब से अनगिनत काएदे-कानून बनाए होगें जिनका काम दहशत फैलाना होगा आपा "
जो़हरा के भीतर ऐसी कितनी बातें सैलाब की तरह उमड़-घुमड़ रही हैं जिसे वो आपा को बताती जा रही है।
" चुप कर... जो़हरा बस अब चुप भी हो जा तुझे यह सब अपनी ज़बान से निकालने में डर नहीं लगता "
" अब डर कैसा आपा दिल की बातें खु़दा से कब छिपी हैं ? "
" दिलखुश मेरा फरिश्ता था जब उसे ही काट ... डाला अब तो आंखों के आँसू भी रहम नहीं खाते आपा "
आक्रोश में डूब कर चीत्कार उठी जो़हरा देख लेना... ,
" उनकी इस गुस्ताखी के लिए उनपर खुद़ा का अजाब लगातार गिरता रहेगा आपा "
" बिल्कुल मेरी तरह ही वह भी जीते जी जहन्नुम की आग में जलते रहेंगे ,
" सुन लो इन जालिमों की तरह ही मेरा इरादा भी फौलाद बन चुका है दिलखुश के बच्चे को इंकलाबी बनाऊंगी इन शैतानी रूहों के खिलाफ आपा "
बड़ी आपा मन ही मन बुदबुदा ... रही हैं।
आमीन् !
सीमा वर्मा / स्वलिखित
६/५/२२