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अम्मां - Kamlesh Vajpeyi (Sahitya Arpan)

कहानीसंस्मरण

अम्मां

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'' अम्मा ''

       बात सन 2005,या 6 की रही होगी।मैं बैंक की तिलक नगर शाखा में कार्यरत था।वहां  करीब 75,,80 साल की  एक वृद्ध महिला आया करती थीं। उनको वृद्धावस्था  पेंशन मिलती थी।वह शरीर से काफी कमजोर थीं और बड़ी मुस्किल से बैंक की 5,,6 सीढ़ी चढ़ पाती थीं।
वह जब भी आतीं मैं उन्हे बड़े अपने पन से अम्मा कह कर बुलाता,और उनका जो भी काम होता उसे कर देता।
  एक बार उनकी पेंशन कई दिनों तक नहीं आई ,वह बहुत परेशान थीं।मेरा एक मित्र इसी विभाग में था ,मैने उसे फोन करके उनकी पेंशन मंगवा दी।
पता नहीं क्यों मुझे उनसे विशेष स्नेह हो गया था।कभी कभी जाड़े के दिनों में मैं उनको चाय भी पिला देता।
बदले में मुझे भी उनका प्यार,और आशीर्वाद मिलता।
जब वह आतीं तो मेरे कुछ साथी हंसी में कहते भी ,लो आपकी अम्मा आ गईं"।

बैंक में जब भी वह आतीं और मैं जब पूछता अम्मा कैसी हो? तो उनके मुख पर स्नेह के भाव प्रकट हो जाते वह हंसते हुए कहती "ठीक हूं बेटा।"इसी तरह दो साल निकल गए। फिर एक दिन जब वह आईं तो बहुत कमजोर लग रहीं थीं।मैने पूछा अम्मा ठीक तो हो? तो वह बड़े उदास भाव से बोलीं "बेटा अब चला चली का वक्त आ गया है।एक जरूरी बात तुमसे कहनी है।मेरी जो बैंक में पांच हजार रुपए की रसीद पड़ी है बेटा वह तुम अपने नाम करवा लो।मैं तुम्हारे नाम लिखे देती हुं।"
उनकी बात सुनकर मैंने कहा अम्मा तुम्हारा जो भी कोई रिश्तेदार हो उसके नाम कर दो मेरे लिए तो आपका आशीर्वाद ही बहुत है।
बड़े दुखी मन से उन्होंने कहा "बेटा कौनो रिश्तेदार मेरा खयाल नहीं रखता।सब बुढ़िया कहते हैं अम्मा तो छोड़ो कउनो चाची तक नहीं कहता।केवल तुम्ही इतने प्यार से "अम्मा " कहके बुलाते हों।मेरा एक बेटा था जबसे वह गुजरा है "अम्मा" शब्द सुनने को तरस गई हूं।  40 साल बाद  किसी ने अम्मा कह कर बुलाया है।तुम जब  मुझे अम्मा कहते हो तो मुझे अपने बेटे ऐसे लगते हो।
मैं अपनी रसीद तुम्हीं को देना चाहती हूं।वैसे किसी को पता नहीं है की मेरे पास पांच हजार रुपया है।"
उनकी बात सुन कर मैंने कहा अम्मा कोई तो आपके आस पड़ोस में होगा जो आपका अंतिम कार्य करेगा उसी को यह रूपये दे दो।उसको लेकर आ जाओ मैं उसके नाम ये रुपए करवा दूंगा।
  वह "अच्छा" कह कर चली गईं।फिर उसके बाद कभी लौट कर नहीं आईं।सन 2008 में मैं भी रिटायर हो गया।
      जब भी मातृ दिवस आता है तो मुझे उस वृद्ध महिला की याद आ जाती है।जो  मेरे केवल "मां "कह कर बुलाने मात्र से मुझे अपने बेटे की तरह समझने लगी थी।कितनी शक्ति है इस "मां" शब्द के उच्चारण में।समस्त संसार में यह हर प्रकार से सर्वोपर रिश्ता है।
            *गोपाल यायावर





      










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