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लघुकथा
#शीर्षक
"मीठी फांस" 🍁🍁
सोलह साल की उम्र बेहद नाजुक होती है। इस उम्र में यों भी लोग दिमाग की कम और दिल की ज्यादा सुनते हैं।
लेकिन शहर मैनपुरी के ' गोविंद बाबू' के सोलह साल के बेटे ' रोहित ' ने सदा ही अपने नाजुक दिल से ऊपर ' दिमाग ' को रखा है।
गोविंद बाबू के बेटे रोहित ने सरकारी स्कूल से प्लस टू की परीक्षा बहुत अच्छे नम्बरों से पास किया है।
खुशी में गोविंद बाबू ने पूरे मुहल्ले में लड्डू बटवाएंं थे।
एवं आगे के प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी के लिए रोहित का ऐडमीशन शहर के सुविख्यात कोचिंग इन्सटीट्यूट में करवा दिया है।
जहाँ साथ-साथ पढ़ते हुए ' प्रिया' और 'रोहित' एक वर्ष से अधिक का समय व्यतीत कर चुके है।
सीधा-सादा रोहित छोटे शहर से है। लेकिन पढ़ने में अव्वल पहले दिन ही उसे लड़की 'प्रिया' को देख पेट में गुदगुदी हुई थी।
प्रिया शहरी आजाद तितली जैसी सीधे गगन छूने की तमन्ना रखने वाली।
उसके लिए रोहित निहायत गंवई और खुद प्रिया के लिए सफलता प्राप्त करने के उपयोगी सीढ़ी मात्र।
आम दिनो की भांति ही आज भी भौतिकी के क्लासेज चल रहे हैं।
घड़ी टिक-टिक करती आगे बढ़ रही थी।
अचानक अध्यापक महोदय ने सरप्राइज़ टेस्ट लेने की अनाउंसमेंट कर दी।
प्रिया के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी हैं। बगल की सीट पर साथ बैठे रोहित से फुसफुसा कर बोली,
"सुन ना रोहित "
रोहित का दिल वल्लियों उछलने लगा है,
"कितनी मीठी प्यारी आवाज "
प्रिया के प्यारे से मुखड़े को निहारता हुआ धीमी आवाज में पूछा,
" बोलो डियर क्या हुआ " ?
"क्या करुँ मुझे तो रोना आ रहा है तू मेरी
हेल्प करेगा ?
उत्सुकता से रोहित ने उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा दिया।
अपनी आवाज़ में मिश्री की सी मिठास घोल ... प्रिया ने कहा ,
" अपनी ऐन्स्वर सीट देगा " ?
प्रिया के प्रति रोहित की दीवानगी ने उस मिठास की चरमसीमा और भी बढ़ा दी है।
लेकिन इसके पहले कि वह कुछ तय कर पाए।
सचेत हुए दिमाग ने जज्बातों की लगाम अपने हाथ में ले ली एवं रोहित को मृगमारीचिका में फंसने के पहले ही आगाह कर दिया।
रोहित ने कन्नी काटते हुए अपनी सीट अलग कर ली।
दिमाग पर भरोसा कर शुक्र मनाते हुए कि,
"अगर इस वक्त सचेत नहीं हुआ तो यह सुकन्या कहीं गले की मीठी फांस ही बन कर न रह जाए " ?
सीमा वर्मा /स्वरचित
नोएडा