कहानीप्रेरणादायकलघुकथा
लघुकथा
#शीर्षक
"शहर अच्छे हैं " 🍁🍁
महानगर का रिहायशी इलाका।
संध्या पाँच बजे के लगभग...
कॉलेज से लौटती अपनी गुलाबी स्कूटी पर सवार लवीना की नजर सामने से आते हुए एक परेशान से खास्ताहाल बुजुर्ग पर टिक गई है।
चेहरे पर हताशा इस ठंडी के मौसम में भी जबकि सारा शहर भयंकर शीतलहर की चपेट में काँप रहा है। उनके चेहरे पर पसीना चुहचुहा रहा है।
" कुछ तो गड़बड़ है " सोच कर लवीना ने उनके पास पंहुच कर स्कूटी रोक कर दी।
उसे अपनी ओर आता देख वह जोर-जोर से हाथ हिलाते हुए सिसक पड़े
" क्या बात है दादू ठंड में पसीना!
सब ठीक है ना ?"
बेसुध हुए बुजुर्ग सहसा कुछ बोल नहीं पाए तब लवीना ने दोबारा फिर जोर दे कर पूछा,
" दादू आप सुन रहे हैं मेरी बात आप कहाँ रहते हैं और कहाँ जाना है "
अब उनकी चेतना लौटी उनका गला रुंध गया और स्वर टूटने लगा है।
यह देख लवीना ने पास ही बने बेंच पर सहारा दे कर उन्हें बैठाया और अपने बैग से निकाल कर पानी पिलाया फिर अत्यंत मुलायम आवाज में पूछी
" दादू आप शायद रास्ता भूल गये हैं ?
" हाँ बिटिया शहर आज ही आया हूँ। यहाँ मेरा बेटा रहता है और उसके पास ही जाना है पर कहाँ यह अब मुझे पता ही नहीं चल रहा है " वे एक सांस में बोल गये।
"आपको जाना कहाँ है आप बता दें मैं पंहुचा दूंगी " वह उनकी मानसिक स्थिति से अवगत हो चुकी है।
महानगर में पहली बार इस अन्जान लड़की के मुँह से सहानुभूति भरी आवाज सुनी और फिर कांपते हाथों से कुर्ते की जेब से परिचय पत्र निकाल लिया।
शाम का वक्त अंधेरा फैलने लगा है,
" मेरा बेटा आज किसी काम में वह व्यस्त था,
" तो मैं ने कहा,
तुम्हें स्टेशन आने की जरुरत नहीं है। मैं पंहुच जाउंगा पर मैं रास्ता भूल गया हूँ बिटिया ,
" दोपहर से शाम होने को आई है यहाँ सभी घर मुझे एक जैसे लग रहे हैं तुम मुझे पंहुचा दोगी ? "
मोबाइल की रोशनी में पता पढ कर लवीना ने उनके चेहरे की ओर देखा भूख और थकान से बेहाल हुआ कातर चेहरा,
"दादू आपको भूख लगी है ना ! "
सुन कर उनकी आंखें चमक उठी पर फिर बुझी आवाज में,
" मेरा बटुआ भी किसी ने मार लिया है बिटिया "
" चिंता मत करें , दादू मैं भी तो आपके बेटे के समान ही हूँ "
फिर बूढ़े बुजुर्ग का हाथ पकड़ कर लवीना ने उन्हें रोड पार कराया और एक रेस्टोरेंट नुमा होटल में जा बैठी और
अपने लिए गर्म चाय तथा दादू के लिए खाना का ऑडर दे दी ,
" लेकिन मैं तुम्हारे पैसे कैसे लौटाऊंगा"
" मैं चल रही हूँ ना दादू आपके साथ"
लवीना ने मजाक भरे लहजे में हँसते हुए कहा।
इसके साथ ही वह बुरी तरह से सहमे हुए बुजुर्ग से बातें करती हुई उन्हें आश्वास्त करने की कोशिश भी कर रही है
लवीना के चेहरे से आत्मीयता झलक रही है।
जिसे देख उन्होंने धीरे से कहा,
"मैंने सुना था! शहर के लोग और उनके रहन-सहन बहुत अलग होते हैं बिटिया,
पर आज तुम्हें देख कर जान पाया कि ,"गाँव हो या शहर 'इन्सान' हर जगह बसते हैं "।
सीमा वर्मा /नोएडा