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"मृग-मरीचिका " भाग ६ ... 🍁🍁 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

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"मृग-मरीचिका " भाग ६ ... 🍁🍁

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लंबी कहानी
"मृग-मारीचिका" भाग छह ...🍁🍁
'समापन अंक'

मित्रों पिछले दिनों आपने पढ़ा। चन्दर को चार दिनों के टूर पर बाहर जाना है... आज आगे ...

अजीब सी जद्दोजहद में घिरी हुई शेफाली ने चन्दर का सामान पैक कर के उसे रवाना कर दिया।
तभी फोन की घंटी बज उठी
फोन रुपाली का है ,
" हाँ बोल दी , मैं थोड़ी बिजी थी "
" रुपा... तू मेरे पास आ सकती है ? मुझे बहुत जरूरी काम है " शेफाली की आवाज थरथरा रही है।
" ओ हैलो, दी तू तो आने को भी ऐसे कह रही है जैसे अहसान कर रही है!
जानती हूँ शादी की सालगिरह आने वाली है बहुत-बहुत मुबारक... "
"अच्छा जीजाजी कहाँ हैं ? चल उन्हें फोन दे वही हैं जो मेरी तरह बात करेंगे मुझसे "
शेफाली की घिग्घी सी बँध गई बस इतना ही बोली ,
" हो सके तो पहली फ्लाइट से आ "
"हैलो दीदी ठीक तो हो ना बहुत डाउन लग रही हो ? "
" ठीक हूँ बस तू आ जा " कह कर फोन काट दिया।
बाहर तेज बरसात हो रही है। इस मौसम में शेफाली जी उठती है। खिड़की से झरता हुआ पानी बागीचे में जमा हो कर स्वयं ही पतली-पतली नालियां बना कर आगे बहता जा रहा है ,
" एक मैं ही रुक गई हूँ " बुदबुदाती शेफाली बड़ी मुश्किल से खुद को समेट पास रखी इजी चेयर पर बैठ गयी।
" लेकिन अब और नहीं! "
उसने अपने दिल-दिमाग पर जो़र डाल कर शरीर की बची हुई ताकत बटोरने की कोशिश की।
चन्दर के साथ अनचाहे , अव्यक्त जकड़े हुए दर्द से छुटकारा पाना होगा। तभी इस अजन्मे शिशु को धरती पर ला पाऊंगी।
" अभी चन्दर चार दिन के लिए बाहर गए हैं मुझे जो भी करना है बस इसी चार दिन में "
" उसके लौट आने के बाद यह कतई मुमकिन नहीं होगा "
किसी से मिलना तो दूर चन्दर को उसका मॉर्निंग वाक पर जाना भी पसंद नहीं है।
लेकिन शेफाली जानती है वह रुपाली को मना नहीं कर सकेगा इसलिए ही रूपाली उसे मदद के लिए सर्वथा उपयुक्त लगी है।
ऊहापोह में पूरा दिन गुजर गया। रुपाली रात को पँहुचने वाली है।
ढ़र्रे से उतर गयी जिन्दगी को फिर से ढ़र्रे पर लाने के लिए किसी मजबूत सहारे को तलाशती शेफाली की आंख रुपाली के आने के इंतजार में कुर्सी पर बैठे-बैठे ही लग गई।
काफी देर बाद जब उसकी आंख खुली तो देखा सामने रुपाली खड़ी मुस्कुरा रही है ,
" कब आई रूपा ? दरवाजा खुला था क्या ? "
" हाँ दी दरवाजा खुला था। मैंने आवाज दी पर आप सोई थी तो मैंंने जगाना ठीक नहीं समझा "
"सोती हुई आप बिल्कुल बच्ची जैसी लग रही हो " कहती हुई उसके गले लग गई।
" घर पर जीजाजी नहीं हैं क्या ?
और दी तुम इतनी बीमार दिख रही हो , तबियत ठीक नहीं है तुम्हारी क्या ? "
"नहीं रूपा वो बस यूँ ही अब तुम आ गई हो तो सब ठीक होगा "
कहती हुई पेट पर साड़ी लपेटती उठ खड़ी हुई। लेकिन उठते ही लड़खड़ा कर गिरने को हुई वो तो रुपाली ने आगे बढ़ कर थाम लिया।
बर्षो बाद स्नेहिल स्पर्श उसके तपते हुए दग्ध हृदय पर बारिश की शीतल बूंदे जैसी... गिरते ही वाष्प बन कर उड़ गई।
और नहीं संभाल पाई वह खुद को फूट कर रो पड़ी ...
" "कौन सा महीना चल रहा है दीदी ? "
यही अन्तर है दोनों बहनो में एक को
अपने हक के लिए लड़ना आता है।
वह शेफाली को देखते ही ताड़ गयी ।
मामला इतना आसान नहीं जितना वह सोच रही है।
उसकी इस मुखर स्वभाव का एक कारण यह भी है कि वह अपने पैरों पर खड़ी है। अपनी किसी भी जरुरत के लिए किसी पर निर्भर नहीं है।
रुपाली शुरु से ही शेफाली को माँ के बराबर मानती है। दोनों में उम्र का बहुत फासला है।
लेकिन आज दीदी को देख कर उसकी सांसे थम सी गयी हैं। खयालों के जाल में और ना उलझ कर बोली... ,
" चलो सबसे पहले डॉक्टर के पास चलते हैं ' शेफाली की आ...ह निकल गई ,
" नहीं रुपा देख हमारे पास समय कम है पहले मेरी पूरी बात सुन ले तब जो समझ में आए वो करना "
धीरे-धीरे उसने अपने विवाह की प्रथम रात्रि से लेकर अबतक की सारी बातों से रुपाली को अवगत कराया... रुपा ने कान पर हाथ रख लिए ,
" इतना कुछ अकेली सहती रही मुझे अब बता रही हो ? "
" इसे थोड़ा कहते हैं दीदी अरे कैसा आदमी है ? ।
" राक्षस है! बिल्कुल औरत की कोई कीमत नहीं है क्या उसकी नजर में ? "
"बच्चे के बिना भी कोई जिन्दगी है ? " तुम धैर्य रखी रही अब तक ?
अब तुम्हें अपने भारतीय नारी होने का चोला उतार फेंकना होगा दी "
" अगर आइन्दे उसने तुम्हें फिजिकल हर्ट किया तो तुम चुप नहीं रहोगी "
शेफाली को रुपा की बात ठीक लग रही है। उसे ऐसा लगा जैसे आज तक सब अंधेरे की आड़ में खोया हुआ था।
इस घर में उसने अपना आस्तित्व सैंकडों बार खोया है।
जाने कितनी बार बनी और कितनी बार मिटी है,
" हे प्रभु अब साथ रहना परीक्षा की घड़ी आ गई है "
" लेकिन दीदी मैं तुम्हें सिर्फ़ रास्ता दिखा सकती हूँ
' करना तो तुम्हें स्वयं होगा' "
" हाँ रुपाली तुम्हारा इतना संबल ही काफी है मेरे लिए "
शेफाली लगभग भावशून्य हो चली थी। उसे लगा जैसे गहरे कुंए से निकल आई है चारो तरफ उजाला हो गया है।
" रुपाली ने कहा है , ' करना तो तुम्हें स्वयं होगा अर्थात बेड़ियाँ मुझे ही तोड़नी है ' "
बस अन्दर से आवाज आई 'तोड़ दो'।
बाकी के दो दिन आगे की प्लानिंग को में निकल गये थे।
उस अत्यंत कठिन राह को रुपाली ने अपनी सूझ-बूझ और व्यवहारिक निर्णय से आसान कर दिया था।
बीच-बीच में चन्दर के फोन लगातार आते रहे जिसे रुपाली ही अटेंड करती उसे सुन कर चन्दर भी मीठी बातें बनाने लगता।
हाँ एक बार शेफाली ने फोन उठा लिया था तो चन्दर ने दाँत पीसते हुए ,
" उसे क्यों बुला लिया है तुमने ? तुम्हें तो मैं आ कर देखता हूँ बहुत फ्री हो रही हो आजकल"
कुछ भी ना उत्तर दे कर शेफाली ने फोन काट दिया।
तीन दिन बीत चुके हैं। रूपाली ने यह कह कर कि ,
" यहाँ तक मैं तुम्हें ले कर आ गई हूँ ।दीदी अब आगे की राह के लिए तुम्हें खुद कदम उठाने हैं "
जो भी करोगी अपनी आसान हो रही जिन्दगी के लिए कर रही हो यह सोच कर करना "
" मैं फ्लाइट पर तुम्हारा इंतजार करूंगी हूँ " कह कर
टैक्सी से एअरपोर्ट के लिए निकल गयी थी।
एक पल के लिए शेफाली भावशून्य हो गई थी। उसका मन हुआ कि रुपा को रोक ले लेकिन नहीं ऐसा करना अपने को कमजोर साबित करने जैसा होगा।

यह सोच कर भारीमन से जाने दिया।
फ्लाइट रात के नौ बजे की थी।
अभी दिन के बारह बज रहे हैं।
चन्दर के आने का समय लगभग हो चला है। उसे जोरों की भूख लग आई।
पहले अपने लिए थोड़ा बहुत कुछ बना कर पेट भर कर खा लिया।
तब मन में यह खयाल आया...,
" उफ्फ क्या करने जा रही है वह ? कैसे इन सब मान-मर्यादाओं को तोड़ पाऊंगी ?
चन्दर से सात जन्म के बंधन बांधी थी मन के द्वंद ने बाहर के शोर थाम लिए "

लेकिन इससे ज्यादा और कुछ सोच पाती दरवाजे की घंटी बज उठी है
धीरे से उठ कर दरवाजा खोली।
देखा चन्दर खड़े हैं, उसे देखते उसकी कमर में हाथ डाल कर गाल पर चिकोटी काट ली,
" बहुत मचल रही हो आज क्या बहुत प्यास लगी है ?
उसे परे कर दिया शेफाली ने,
" क्या बात है बहुत हिम्मत आ गई है रुपाली का असर लग रहा है " कह कर उसे बेड पर धकेल दिया।
" चन्दर " जोर से चीखी... शेफाली।
" खबरदार जो जो़र से चीखी पति हूँ तुम्हारा कोई गैर मर्द नहीं " कहता हुआ टूट पड़ा।
जैसे सारी दीवारें ढ़ह गई हों। शेफाली की नसों में बहता हुआ खून इस वक्त गर्म लेकिन दिमाग बिल्कुल ठंडा है।
उसने किसी तरह अपने हाथ को चन्दर की चंगुल से छुड़ाया और बगल की मेज पर रखा चाकू उठा पूरे जोर लगा कर उसकी पीठ में चुभो दिए ।
अचानक हुए इस वार से चन्दर तिलमिला उठा वह जैसे ही झपटने की कोशिश करता शेफाली फिर से चाकू घुपा देती।
चन्दर चीख उठा ,
ये क्या है शेफाली ? "
"कुछ भी नहीं तुम्हारी आज तक की करतूतों के सामने कुछ भी नहीं है चन्दर चाहती तो जिन्दा ही काट कर रख देती पर मेरे संस्कार ऐसे नहीं है "
फिर झटपट साड़ी संभालती हुई उठी चन्दर का फोन उठा कर अपने बैग में डाल दरवाजा खोल कर निकल गयी।
निकल कर दो मिनट के लिए थथम कर जोर से चिल्ला कर बोली,
"अब कोर्ट में मिलेगें आना जरूर " उसे लगा उसकी सांस वापस से चलने लगी है।
जैसे गहरे पानी से बाहर निकालने के लिए कोई अपने नन्हें-नन्हें हाथ आगे बढ़ा रहा है जिसके सहारे वह बाहर आ रही है।
नजदीक आती टैक्सी को रोक ,
" एअरपोर्ट चलना है! "
कहती हुई पिछली सीट पर निढ़ाल हो गई।
समाप्त
सीमा वर्मा / नोएडा

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दादी की परी
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