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मैं आज हूँ - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

मैं आज हूँ

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  • 11 Min Read

मैं आज हूँ
मैँ आज हूँ
वक्त की नाजुक,
थिरकती उँगलियों पर
लमहों का बजता हुआ
एक साज हूँ
मैं आज हूँ

पिछले कल 
और अगले कल,
उस जकड़ते से कल
और उस छलते से कल,
इन दो पाटों के बीच से
खुद को बाहर खींच के
खुद के वजू़द संग संग सँभलता
हर पल के साँचे में ढलता
अहसासों की सीपी में ढल
एक स्वातिबिंदु सम पल-पल पलता
नित नूतन मोती में ढलता
जीने का अंदाज हूँ
मैं आज हूँ

मैं वक्त की एक चहकती आवाज हूँ
पलकों के साये में पलती महकती सी आस हूँ
सपनों का एक बहकता आगाज़ हूँ
पल-पल नया अंदाज हूँ
एक खुशनुमा अहसास हूँ
मैं जीवन की जीवंतता हूँ
नश्वरता से पल-पल 
बरबस बाहर झाँकती 
काल की अनंतता हूँ
मैं नित नूतन ऊँचाइयाँ छूता हुआ
जीवन का परवाज हूँ
मैं आज हूँ

दो ठहरे-ठहरे से कलों के
बीच निरंतर बहता हूँ
रुकना मेरा काम नहीं,
मैं तो बस चलता रहता हूँ
पल-पल मैं एक 
नयी कहानी कहता हूँ
बनकर मौजों की रवानी, बहता हूँ
इन जमे हुए दो कूलों के
जड़ता के इन दो शूलों के
बीच महकता फूल एक बिंदास हूँ
मैं आज हूँ

मैं तो एक उमंग हूँ
खुशनुमा अहसास की तरंग हूँ
मैं इंद्रधनुष में निखरा 
हर एक रंग हूं
मैँ हवा के कण कण में
बिखरी हुई उन्मुक्तता की भंग हूँ
मैं महाकाल का डमरू हूँ
नटराज का थिरकता सा
मदमस्त अंग-प्रत्यंग हूँ

मैं जीवन की इन धमनियों में
दौड़ता सा रक्त हूँ
हर कल को पीछे छोड़ता 
हर पल से नाता जोड़ता
जड़ता की सारी जंजीरें तोड़ता
पल-पल में अनुरक्त हूँ
मैं वक्त हूँ

मैं तो पल-पल में जीता हूँ
हर लमहे को 
बूँद-बूँद कर,
घूँट-घूँट भर पीता हूँ
कल सा नहीं मैं बीता हूँ
कल सा नहीं मैं रीता हूँ

मैँ तो नदिया सा भरा-भरा
महकी बगिया सा हरा-भरा
लमहों की इन पंखुडियों पे
ढलकती सी ओस हूँ
मैं जीवन के हर एक 
पहलू से छलकती सी
एक जिंदादिल सोच हूँ
रहता तो मैं खामोश हूँ
पर पल-पल की 
हर एक धड़कन का जोश हूँ
खुशबू सा मदहोश हूँ
प्राप्त को पर्याप्त समझता
एक अद्भुत संतोष हूँ

मैं जीवन की सारी खुशियों का मंत्र हूँ
हर तनाव के बंधन से स्वतंत्र हूँ
मैं बच्चे सा अल्हड़ हूँ
मैं कबीर सा फक्कड़ हूँ
मैं अमर, अजर, निरंतर हूँ
मैं अभयहस्त अभयंकर हूँ
मैं महाकाल, मैं शंकर हूँ
संभावना का एक मुठ्ठी आकाश हूँ
मैं हमसफर बन,
वक्त की हर एक डगर पर
हर लमहे का हाथ थामकर
चलने का एक अंदाज हूँ
मैं आज हूँ
मैं आज हूँ

द्वारा: सुधीर अधीर

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