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दरीचे - meera tewari (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

दरीचे

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दरीचे से देखते थे छुप-छुप के उनको,
आजकल वह चाँद सा चेहरा नज़र नहीं आता।
मायूस खडें है अपने दरीचे में,
आजकल परिन्दे भी ख़फ़ा है हमसे।
कुछ ख़्वाब देखे थे उस हीरे की कनी के लिए,
खबर नहीं, क्यों ?मेरे रक़ीब हो गए।
उसने दिखलाई एक झलक बगीचे में,
हम तबाह हो गए दरीचे में।
मुझे देखकर चिलमन में तेरा छुप जाना,
अगरचे हया है तेरी, या मुझसे दामन बचाना।
तेरी दीद को तरसे है मेरे चश्म,
मुकाबिल हो कभी किसी गुल के दरीबे में।
मैं तेरे गुलशन का गुल न सही,खार रहने दे,
दामन थाम लूँगा जब गुजरेगी तू मेरी साँसों के दरीचे से।
तम्मना है मेरी गौहर बनूँ मैं तेरी आँखों का,
न जाने अंजाम-ए-तम्मना क्या हो।

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