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कल फिर हो ना हो - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

कल फिर हो ना हो

  • 143
  • 11 Min Read

पिछला कल तो बीत गया
अगला कल तो बस सपना है
जियो आज के हर पल को
बस एक यही तो अपना है

यह अपना सा,
यह अदना सा,
खूबसूरत सपना सा
हर आज में सिमटा ये अब
और हर अब में लिपटा ये रब,
रब जाने, ये पहचाने से
पल फिर हों ना हों

हम खोज रहे
जिस कल के पल
वो कल फिर हो ना हो

जो बीत गया
सो बीत गया
जो बीत-बीतकर
रीत गया
जो उस बीते में,
उस रीते में फँस गया
गहरी दलदल में धँस गया

हाँ, आज जो अब पास है
अपने आस-पास है
जो खूबसूरत इत्तफ़ाक़ है
महकता सा, चहकता सा
खुशनुमा अहसास है
हर पल के साये में पलता
पल-पल के साँचे में ढलता
एक नया अंदाज है

हर पल में बसते आज में
एक नये आगाज़ में
वक्त के इस साज पे
बजता यह सरगम
इसके सीने में थिरकते से
अहसासों की यह धड़कन
कौन जाने,
कल फिर हो ना

अजब है वक्त की फितरत
बंद मुठ्ठी सी हर किस्मत
इस आसपास बिखरे अपने में
यूँ पल-पल निखरे से सपने में
पल-पल के बीजों से फूटे
अंकुरों जैसी हर हसरत

इन पर ढलकता ख्वा़ब ये
इनसे छलकता राज ये
इनमें झलकता आज ये
फिर वक्त के सैलाब में
खो जाये, गुम हो जाये
जो आज है, जो पास है,
वो पल फिर हो ना हो
वो कल फिर हो ना हो

हाँ, आज तो देखा-भाला सा,
साथ-साथ जिया सा है
लमहा-लमहा, बूंँद-बूँद
भर घूँट-घूँट पिया सा है
कल का जाने क्या भरोसा,
कल फिर हो ना हो

हाँ, आज में जो वफ़ा है
वो वफ़ा उस बेवफा से
कल में हो ना हो
आज में अहसास का
जो खुशनुमा सा समाँ है
वो समाँ, उस गुमशुदा से
कल में हो ना हो

आज के हर रंग में
छोटे-छोटे लमहों में
सिमटे इसके हर अंग में
इस गुलशन के हर फूल संग
बिखरी-बिखरी हर गंध में
निखरी-निखरी जो फिजा़ है
वो फिजा़
उस बेमजा से,
बेवजह से
कल में हो ना हो

और कौन जाने,
वो कल ही फिर हो ना हो

हाँ, जो आज है,
जो पास है
साया बनकर
आसपास है,
बस उसको ही समेट लो
अहसासों के दामन में
उसको ही लपेट लो
क्या पता महफूज़ ये दामन
कल फिर हो ना हो

पिछला सब कुछ भूलता
संग-संग इसके झूलता
कड़ी धूप के बाद झूमता
पहला-पहला सा ये सावन
कल फिर हो ना हो

हाँ, जो अब है,
बस वो ही बिंदास है
वो ही जीने की आस है
हर लमहा ही जीने की
एक प्यास है
हर एक साँस के बाद
मचलती सी एक साँस है
कौन जाने,
साँसों का ये
कोलाहल फिर हो ना हो
कल फिर हो ना हो

हर रात की एक नयी सुबह
हर आज की एक नयी वजह
एक नये अंदाज में
हर सीने के हर साज में
एक थिरकन की एक नयी जगह
कल फिर हो ना हो

यह एक नयी धड़कन,
एक हलचल
इससे बहका-बहका
यह पल
इसका यह
मासूम सा छल
कल फिर हो ना हो
कल फिर हो ना हो

द्वारा : सुधीर अधीर

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