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मेरे घर आना जिंदगी - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

मेरे घर आना जिंदगी

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मेरे घर आना जिंदगी
मेरे घर आना जिंदगी
पल-पल में सिमटे आज को
मन के हर अहसास को
अंतर्मन की आवाज को 
जीने के हर अंदाज को
हर एक नये आगाज़ को

बनाते जाना बंदगी
मेरे घर आना जिंदगी
मेरे घर आना जिंदगी

बन ममता की मीठी लोरी
बन माँ के आँचल की छाया
बनकर पिता का अभयहस्त
अनगिन आशीषों का साया
बनकर मासूम बचपन सी
पचपन में झलके बचपन सी
हर एक रिश्ते के दोने में
उडे़लती अपनापन सी
मन की नाजुक पंखुडियों पर 
एक स्वातिबिंदु सी
छलक-ढलक-झलक जाना जिंदगी
मेरे घर आना जिंदगी
मेरे घर आना जिंदगी

सहसा पलकों पर बिखरती
मोती सी बनकर निखरती
रोशनी के वास्ते
खुद को जलाती शमा सी
हर मासूम भूल पर
माँ के जैसी क्षमा सी
हर रोज एक 
मुस्कुराती सुबह सी
खुश रहने की एक 
खुशनुमा सी वजह सी
मन के आँगन में 
प्यार की एक जगह सी
धरती जैसी हरी-भरी
कण-कण ममता से भरी-भरी
गोदी बन जाना जिंदगी
मेरे घर आना जिंदगी
मेरे घर आना जिंदगी

हर प्यासे को कुआँ सी
एक रूहानी दुआ सी
हर एक चुभन पर 
फूल की एक छुअन सी
हर प्रयास के वामन के
कदमों में सिमटे भुवन सी
हर नये सावन की पहली
बरखा की पहली बूँद सी
कण-कण में रब को ढूँढती
जन-जन की मंगलकामना बन
पल-पल में शुभ संभावना बन
हर उन्माद को संयम करती
हर वियोग को संगम करती
हर सन्नाटे में सरगम भरती
क्षण-क्षण एक नवदृष्टि पर
कण-कण पर प्रेम-वृष्टि बन
एक अद्भुत सृष्टि बन
बन तूलिका हर चित्र में,
चुराकर इंद्रधनुष से,
सात रंग भर जाना जिंदगी
मेरे घर आना जिंदगी
मेरे घर आना जिंदगी

कागज की नन्हीं नाव बन
किसी अपने के आने की आहट सी
कौए की काँव-काँव बन
बरसों पहले बिछुडा़ गाँव बन
बूढे़ बरगद की छाँव बन,
कान्हा की मुरली पर थिरके,
राधा के दो पाँव बन
मन को मनभावन वृंदावन
कर जाना जिंदगी
मेरे घर आना जिंदगी
मेरे घर आना जिंदगी

द्वारा : सुधीर अधीर

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