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समय के हस्ताक्षर - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

समय के हस्ताक्षर

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  • 7 Min Read

जीवन के कोरे कागज पर
पल-पल समय के हस्ताक्षर
क्या कहे निशा के कानों में
हर नयी सुबह यूँ आ-आकर

हर एक उदासी को
कह देती अलविदा
खुश होने की एक खुशनुमा सी
नयी वजह यूँ मुस्कुराकर

घड़ी की सुइयों के संग घूमते
लमहों, मिनटों और घंटों के,
और छपे कैलेंडर के सीने पे
तारीखों, हफ्तों, महीनों के पंखों पे
उड़ते समय के पंछी संग
यह साल भी उड़ जाना है

और अगले साल की
बंद मुठ्ठी में सिमटा,
इस नन्हे से नवजात शिशु की
जन्मघुट्टी में सिमटा
अनिश्चितता की अनगिनत
परतों में लिपटा

भविष्य के गर्भ में
अनजान, अजात,
अनबूझे, अज्ञात,
अनागत कल के
इन नये मुबारक कदमों संग
आगाज़ करने आ रहे
नवजात पल का

बीते कल के बोझ से
आजाद कल का
कौन-कौन सा रूप
सामने आना है

इन सब का उत्तर तो अब भी
सिर्फ नियति के पास है
फिर भी जाने क्यूँ, किसलिए
हर नया साल यूँ हम सबको
लगता कुछ खास है

जो आज अपने
आस-पास है
उसमें सिमटा सा
ऐसा कुछ अहसास है
"कल आज से बेहतर होगा "
मासूम दुआ सी रूहानी
एक आस है
सच करने को इस आस को
दाता से एक अरदास है

इस आस और अरदास पे
इस जिंदादिल अहसास पे
हर एक साँस संग
नित नूतन एक आस पे
यह जीवन, यह संसार टिका है

हाँ, ऐसी ही नवदृष्टि से
हर एक पल में एक
अगला पल दिखा है
हर एक आज में एक
उजला कल दिखा है

हाँ, वक्त की हवाओं में
जिंदगी के कैलेंडर के
उड़ते, उलटते-पलटते से
तुड़ते-मुड़ते और
सिकुड़ते से
इन पन्नों पे

इस कालवृक्ष के
पल-पल झरते
फिर नवपल्लवित,
नवविकसित
होते रहते इन पत्तों पे

इच्छा-शक्ति की लेखनी से
नवसंकल्पों की रोशनी में
मानव ने हर कालखंड में
नित-नूतन इतिहास लिखा हैं

द्वारा : सुधीर अधीर

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